Basic Knowledge of Hindi Language Part-2
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हिंदी भाषा का बुनियादी ज्ञान भाग -2
- निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल में छंद होगा – दोहा
- इस भांति गदगद कंठ से तू,रो रही है हाल में रोती फिरेगी कौरवो की, नारियां कुछ काल में यहां छंद है – हरिगीतिका
- बोला बचन नीति अति पावन, सुनहु तात कुछ मोर सिखावन में छंद है – चौपाई
- निसि द्यौंस ख्री उर मांझ अरी, छवि रंग भरी मुरि चाहनि की। तकि मोर नित्यो खल ढोरि रहे, टरिगो हिय ढोरनि बाहनि की में छंद है – दुर्मिल सवैया
- छंद के प्रकार है – मात्रिक और वर्णिक छंद (गण बध्द और मुक्तक)
- चार से अधिक चरण वाले छंद कहलाते हैं – विषम छंद (कवित्त और कुण्डलिया)
- कवित्त छंद के भेद है – मनहरण कवित्त और घनाक्षरी
- मनहरण कवित्त के प्रत्येक चरण में वर्ण होते हैं – 31 (8 8 7 8 वर्णो पर यति)
- घनाक्षरी छंद के भेद है – रूप घनाक्षरी (32 वर्ण ) और देव घनाक्षरी (33 वर्ण)
- सवैया के तीन प्रकार है – भगण से बना हुआ, सगण से बना हुआ और जगण से बना हुआ
- सवैया छंद के भेद है – मतगयंद (मालती) सवैया, सुमुखी सवैया, चकोर सवैया (23 वर्ण), किरीट सवैया, दुर्मिल सवेया, अरसात सवैया (24 वर्ण), सुंदरी सवैया, अरविंद सवैया, लवंगलता सवैया (25 वर्ण) एवं सुख सवैया या कुंदलता सवैया (26 वर्ण)
- आचार्य भरत ने नाटयशास्त्र में रस माने है – उन्होंने नाटक में आठ रस माने है
- नवां रस ‘शांत रस’ कब से स्वीकार किया गया – हर्षवर्ध्दन रचित नागानंद नाटक की रचना के बाद
- वात्सल्य रस की स्थापना कब हुई – महाकवि सूरदास द्वारा वात्सल्य सम्बन्धित मधुर पद से
- भक्ति को रस रूप माना गया – भक्ति रसामृत सिंधु और उवल नीलमणि नामक ग्रंथ की रचना के बाद
- रसों की कुल संख्या है – वर्तमान में 11
- रस शब्द किसके योग से बना है – रस् + अच्
- नाटयशास्त्र के आधार पर रस की परिभाषा है – स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पति होती है।
- आनंदवर्धन ने रस की परिभाषा दी है – रस का आश्रमय ग्रहण कर काव्य में अर्थ नवीन और सुंदर रूप धारण कर सामने आता है।
- काव्य पढ़ने के बाद ह्दय में जो भाव जगते हैं उसे रस कहते हैं यह परिभाषा दी है – डॉ. दशरथ औझा ने