Ayurveda General Knowledge Questionnaire-8

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चरकसंहिता: आयुर्वेद सामान्य ज्ञान प्रश्नावली-8

(701) त्र्यूषणादिमन्थ किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य
(702) व्योषद्य सत्तु किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य
(703) चरकानुसार “सक्षौद्रश्चाभयाप्राशः” किसकी चिकित्सा है।

(क) संतर्पणजन्य रोग (ख) अपंतर्पणजन्य रोग (ग) अतिस्थौल्य (घ) अतिकार्श्य
(704) चरक ने संतर्पण के भेद माने है।

(क) 2 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 3
(705) चिरक्षीणं रोगी का पोषण चरकमतेनहोता है …..।

(क) सद्य संतर्पण (ख) संतर्पणाभ्यास (ग) सद्यः बृंहण (घ) सत्वावजय
(706) चरकानुसार शर्करा, पिप्पलीचूर्ण, तैल, घृत, क्षौद्र और दुगुना सत्तु जल में घोलकर बनाया गया मन्थ होता है।

(क) वृष्य (क) बल्य (क) कार्श्यहर (क) स्थौल्यहर
(707) बलवर्णसुखायुषा किसका कार्य है।

(क) रूधिर (ख) ओज (ग) आहार (घ) अ, स दोनो
(708) प्राणियों के प्राण किसका अनुवर्तन करते है।

(क) रूधिर (ख) ओज (ग) आहार (घ) वायु
(709) निम्न में से रक्तज रोग है।

(क) तन्द्रा (ख) प्रमीलक (ग) उपकुश (घ) उर्पयुक्तसभी
(710) रक्तज रोगों का निदान किससे होता है।

(क) उपशय (ख) अनुपशय (ग) रूप (घ) पूर्वरूप
(711) शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष आदि उपक्रमों भी जो शान्त नहीं हो वेरोग कौनसे होते है।

(क) असाध्य (ख) दारूण (ग) धातुगत (घ) रक्तज
(712) रक्तज रोगों की चिकित्सा है।

(क) विरेचन (ख) उपवास (ग) दोनों (घ) बस्ति
(713) रक्तमोक्षण के पश्चात् किसकी रक्षा करनी चाहिए।

(क) रस की (ख) धातु की (ग) अग्निकी (घ) वायुकी
(714) “रक्तपित्तहरी क्रिया” – किन रोगों में करनी चाहिए ? (च.सू.24/18)

(क) पित्तज रोग (ख) रक्तजरोग (ग) संतर्पणजरोग (घ) रक्तपित्त
(715) चरक ने मद के प्रकार माने है।

(क) 2 (ख) 4 (ग) 7 (घ) 3
(716) निम्न में से कौनसा एक मनोवह स्रोतस का रोग नहींहै।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) उपर्युक्त सभी
(717) मूर्च्छा कौनसे स्रोतस का रोग है।

(क) रसवह (ख) रक्तवह (ग) संज्ञावह (घ) मनोवह
(718) “सम्प्रहार कलिप्रियम्” -कौनसे मद का लक्षण है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(719) जायते शाम्यति त्वाशु मदो मद्यमदाकृति। – कौनसे मद का लक्षण है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(720) ‘भिन्नवर्च’कौनसी मूर्च्छा का लक्षण है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(721) कौनसी मूर्च्छा में अपस्मार के लक्षण देखने को मिलते है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(722) ‘काष्ठीभूतो मृतोपमः’ किसका लक्षण है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार हेतु
(723) दोषों का वेग शान्त हो जाने पर शान्त हो जाने वाली व्याधियॉ है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) दोनों (घ) संन्यास
(724) ‘विधि शोणितीय’ अध्याय चरकोक्त किस सप्त चतुष्क में आता है।

(क) निर्देश (ख) कल्पना (ग) रोग (घ) योजना
(725) ‘सद्यः फलाक्रिया निर्दिष्टः’ किसमें है।

(क) अत्वाभिनिवेश (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार
(726) ‘कौम्भघृत’ निर्दिष्ट है।

(क) अत्वाभिनिवेश (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार
(727) ‘शिलाजतु’ निर्दिष्ट है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) दोनों (घ) संन्यास
(728) कौनसा रोग बिना औषधि के ठीक नहीं हो सकता है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) दोनों (घ)संन्यास
(729) कौन सी अवस्था के लिए चिकित्सा परम आवश्यक है ?

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार
(730) चरक संहिता के किस अध्याय मे सम्भाषा परिषद नहीं हुई है।

(क) यज्जः पुरूषीयं (ख) आत्रेय भद्रकाप्यीय (ग) वातकलाकलीय (घ) अन्नपानविधि
(731) चरक संहिता के यज्जःपुरूषीय अध्याय निर्दिष्टसम्भाषा परिषद में प्रश्नकर्ता कौन थे।

(क) विदेह निमि (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) काशिपति वामक
(732) ‘कालवाद’ के प्रवर्तक है।

(क) भारद्वाज (ख) भद्रकाप्य (ग) कांकायन (घ) भिक्षु आत्रेय
(733) मौदगल्य पारीक्ष किस मत के समर्थक थे।

(क) सत्ववाद (ख) आत्मवाद (ग) रसवाद (घ) षड्धातुवाद
(734) पुरूष छः धातुओं के समूह से उत्पन्न हुआ है यह दृष्टिकोण किसका है –

(क) भद्रकाप्य (ख) हिरण्याक्ष (ग) कांकायन (घ) भिक्षु आत्रेय
(735) मातृ-पितृवाद किससे सम्बन्धित है।

(क) शरलोमा (ख) कौशिक (ग) भरद्वाज (घ) भद्रकाप्य
(736) निम्न में से आहार का कौनसा प्रकार चरक ने नहीं माना है।

(क) पान (ख) अशन (ग)भोज्य (घ) भक्ष्य
(737) आहार में अन्न की मात्रा 1 कुडव किसने बतलायी है।

(क) चरक (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) चक्रपाणि
(738) मृत्स्य वसा में हिततम है।

(क) चुलुकी वसा (ख) चटक वसा (ग) पाकहंस वसा (घ) कुम्भीर वसा
(739) चरकानुसार मृग मांस वर्ग में अहिततम है ?

(क) ऐण मांस (ख) गोमांस (ग) आवि मांस (घ) अजा मांस
(740) शूक धान्यों में अपथ्यतम है।

(क) कोद्रव (ख) यवक (ग) यव (घ) प्रियंगु
(741) चरकानुसार फल वर्गमें अहिततम है।

(क) आम्र (ख) मृद्वीका (ग) ऑवला (घ) लकुच
(742) चरकानुसार फल वर्ग हिततम है।

(क) आम्र (ख) मृद्वीका (ग) ऑवला (घ) लकुच
(743) चरकानुसार कन्दो में प्रधानतम है।

(क) आलु (ख) आर्द्रक (ग) सूरण (घ) वाराही
(744) सुश्रुतानुसार कन्द वर्गमें प्रधानतम है।

(क) आलु (ख) आर्द्रक (ग) सूरण (घ) वाराही
(745) पत्रशाक में श्रेष्ठतम है।

(क) सर्षप (ख)पालक (ग) मूली (घ) जीवन्ती
(746) जलचर पक्षी वसा में हिततम है।

(क) चुलुकी वसा (ख) चटक वसा (ग) पाकहंस वसा (घ) कुम्भीर वसा
(747) चरकानुसार अग्रय भावों की संख्या है।

(क) 125 (ख) 152 (ग) 155 (घ) 160
(748) वाग्भट्टानुसार श्रेष्ठ भावों की संख्या है।

(क) 125 (ख) 152 (ग) 155 (घ) 160
(749) …..पथ्यानाम्।

(क) गोघृत (ख) क्षीर (ग) हरीतकी (घ) आमलकी
(750) …..सांग्राहिक रक्तपित्तप्रशमनानां।

(क) अनन्ता (ख) उत्पल (ग) कुमुद (घ) उपर्युक्त सभी
(751) एरण्डमूलं …..।

(क) वातहराणां (ख) वृष्य त्रिदोषहराणां (ग) वृष्य वातहराणां (घ) वृष्य सर्वदोषहराणां
(752) अनारोग्यकराणां …..।

(क) विषमासन (ख) विरूद्धवीर्यासन (ग) वेगसंधारण (घ) गुरू भोजन
(753) …..हृद्यानाम्।

(क) गोघृत (ख) क्षीर (ग) मधुर (घ) अम्ल
(754) राजयक्ष्मा …..।

(क) रोगाणाम् (ख) दीर्घरोगाणाम् (ग) रोगसमूहानाम् (घ) अनुषंगिणाम्
(755) जीवन देने में श्रेष्ठ है ?

(क) क्षीर (ख) आयुर्वेद (ग) जल (घ) वैद्यसमूह
(756) जलम् …..।

(क) आश्वासकराणां (ख) श्रमहराणां (ग) स्तम्भनीयानां (घ) बल्यानां
(757) …..पुष्टिकराणां।

(क) निर्वृतिः (ख) सर्वरसाभ्यासो (ग) कुक्कुटो (घ) व्यायाम
(758) वस्ति …..।

(क) वातहारणां (ख) व्याधिकराणां (ग) तंत्राणां (घ) अ एवं स दोनों
(759) …..सर्वापथ्यानाम् ।

(क) आविदुग्ध (ख) आयास (ग) विरू़़़़़़द्धाहार (घ) विषमासन
(760) छेदनीय, दीपनीय, अनुलोमन और वातकफ प्रशमन करने वाले द्रव्यों में श्रेष्ठ है।

(क) हींगुनिर्यास (ख) निःसंशयकराणां (ग) वैद्यसमूहानां (घ) साधनानां
(761) उदक् …..।

(क) आश्वासकराणां (ख) श्रमहराणां (ग) स्तम्भनीयानां (घ) बल्यानां
(762) “वृष्य वातहराणाम्” है।

(क) एरण्ड पत्र (ख) एरण्ड मूल (ग) एरण्ड पंचांग (घ) उपर्युक्त सभी
(763) अन्नद्रव्य अरूचिकर भावों में श्रेष्ठ है।

(क) पराघातनम् (ख) तिन्दुक (ग) प्रमिताशन (घ) रजस्वलाभिगमन
(764) कुष्ठ …..।

(क) रोगाणाम् (ख) दीर्घरोगाणाम् (ग) रोगसमूहानाम् (घ) अनुषंगिणाम्
(765) चरक ने अग्रय प्रकरण में आमलकी को …..बताया है।

(क) वातहर (ख) दाहप्रशमन (ग) वयःस्थापन (घ) रसायन
(766) ‘निम्नलिखित में से कौन सी एक औषधि संग्रहणीय, दीपनीय और पाचनीय के रूप में नित्य सर्वाधिक उपयोगी है।

(क) मुस्ता (ख) कट्वंग (ग) शतुपुष्पा (घ) विल्ब
(767) कास, श्वास और हिक्का रोग में श्रेष्ठ औषधि कौन-सी है ?

(क) अनंतमूल (ख) पुष्करमूल (ग) दशमूल (घ) शटी
(768) चरक ने श्रेष्ठ बल्य बताया हैं।

(क) क्षीर (ख) बला (ग) घृत (घ) कुक्कुट
(769) एककाल भोजन …..।

(क) सुखपरिणाम कराणां (ख) कर्शनीयानाम् (ग) दौबर्ल्यकरणां (घ) अग्निसन्धुक्षणानां
(770) …..उद्धार्याणां।

(क) ग्रहणी (ख) आमदोष (ग) अजीर्ण (घ) आमविष
(771) …..विषघ्ननां।

(क) गोघृत (ख) शिरीष (ग) विडंग (घ) आमलकी
(772) श्रमघ्न द्रव्यों में श्रेष्ठ है

(क) सुरा (ख) क्षीर (ग) वस्ति (घ) सर्वरसाभ्यास
(773) आसव का सर्वप्रथम वर्णन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) आत्रेय (घ) वाग्भट्ट
(774) आसव का सर्वप्रथम परिभाषा दी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) आत्रेय (घ) वाग्भट्ट
(775) आसव की योनियॉ है।

(क) 8 (ख) 9 (ग) 11 (घ) 6
(776) चरकानुसार आसव की संख्या है।

(क) 84 (ख) 90 (ग) 80 (घ) 9
(777) पुष्पासव की संख्या …..।

(क) 11 (ख) 10 (ग) 6 (घ) 4
(778) मूल आसव की संख्या …..।

(क) 11 (ख) 10 (ग) 84 (घ) 9
(779) चरकानुसार कितने प्रकार के त्वगासव है –

(क) 4 (ख) 11 (ग) 10 (घ) 26
(780) निम्न में से किसका त्वक् आसव नहीं होता है।

(क) तिल्वक (ख) लोध्र (ग) अर्जुन (घ) एलुआ
(781) निम्न में से किस द्रव्य का प्रयोग फल व सार दोनों आसवों मे होता है।

(क) खर्जूर (ख) धन्वन (ग) अर्जुन (घ) श्रृंगाटक
(782) “पथ्यं पथोऽनपेतं यद्यच्चोक्तं मनसः प्रियम्” – किसने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(783) किसआचार्य ने पथ्य के साथ अपथ्य की भी परिभाषा दी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(784) आसव नाम आसुत्वाद् आसवसंज्ञा। – किसने कहा है।

(क) चरक (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) चक्रपाणि
(785) आसुत्वात् सन्धानरूपत्वात् आसव। – किसने कहा है।

(क) चरक (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) चक्रपाणि
(786) यद पक्वकौषधाम्बुभ्यां सिद्धं मद्यं स आसवः। – किसने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) शारंर्ग्धर (घ) चक्रपाणि
(787) आसव और अरिष्ट में अन्तर सर्वप्रथम किसने बतलाया है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) शारंर्ग्धर (घ) चक्रपाणि
(788) चरक संहिता के किस अध्याय मे रस संख्या विनिश्चय संबंधी सम्भाषा परिषदहुई है।

(क) यज्जः पुरूषीयं (ख) आत्रेय भद्रकाप्यीय (ग) वातकलाकलीय (घ) अन्नपानविधि
(789) क्षारकी गणना रसों में किसने की है।

(क) वैदेह (ख) धामार्गव (ग) अ एवं ब दोनों (घ) उपर्युक्त कोई नही
(790) रस की संख्या 6 किसने मानी है।

(क) वार्योविद (ख) वाग्भट्ट (ग) पुर्नवसु आत्रेय (घ) उपर्युक्त सभी
(791) रस संख्या विषयक सम्भाषा परिषद में विदेह राज निमि ने कहा था रस होते है ?

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(792) ‘एक एव रस इत्युवाच’ – किसका कथन है।

(क) भद्रकाप्य (ख) शाकुन्तेय (ग) कुमारशिरा भरद्वाज (घ) हिरण्याक्ष
(793) छेदनीय, उपशमनीय और साधारण किसके भेद है ?

(क) रस (ख) दोष (ग) भेषज् (घ) आसव
(794) रस की संख्या 8 किसने मानी है ?

(क) वार्योविद (ख) निमि (ग) धामार्गव (घ) कांकांयन
(795) छेदनीय और उपशमनीय रसों को किसने माना है।

(क) कुमारशिराभारद्वाज (ख) हिरण्याक्ष मौद्गल्य पूर्णाक्ष (ग) शाकुन्तेय (घ) ब, स दानों
(796) किस आचार्य ने पंच महाभूतों के आधार पर रस 5 माने है।

(क) कुमारशिरा भारद्वाज (ख) हिरण्याक्ष (ग) शाकुन्तेय (घ) मौद्गल्य पूर्णाक्ष
(797) स पुनरूदकादनन्य। – रस को किसने माना है।

(क) भद्रकाप्य (ख) हिरण्याक्ष (ग) शाकुन्तेय (घ) मौद्गल्य पूर्णाक्ष
(798) रस की संख्या अपरिसंख्येयकिसने मानी है ?

(क) भद्रकाप्य (ख) वार्योविद (ग) कुमारशिरा भरद्वाज (घ) कांकायन
(799) रस की योनि हैं।

(क)जल (ख) रसेन्द्रिय (ग) द्रव्य (घ) कोई नहीं
(800) “सर्व द्रव्यं पा×चभौतिकम अस्मिनर्न्थेः।”- किसने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

उत्तरमाला

701.क 721.घ 741.घ 761.क 781.ख
702.क 722.ग 742.ख 762.ख 782.क
703.क 723.ग 743.ख 763.क 783.क
704.क 724.घ 744.ग 764.ख 784.क
705.ख 725.ग 745.घ 765.ग 785.घ
706.क 726.ख 746.ग 766.क 786.ग
707.घ 727.ग 747.ख 767.ख 787.ग
708.क 728.घ 748.ग 768.घ 788.ख
709.घ 729.ग 749.ग 769.क 789.ग
710.ख 730.घ 750.घ 770.ग 790.घ
711.घ 731.घ 751.ग 771.ख 791.ग
712.ख 732.घ 752.ग 772.क 792.क
713.ग 733.ख 753.घ 773.क 793.क
714.ख 734.ख 754.ग 774.क 794.ग
715.ख 735.ख 755.ख 775.ख 795.घ
716.घ 736.ग 756.ग 776.क 796.क
717.ख 737.घ 757.क 777.ख 797.क
718.ख 738.घ 758.घ 778.क 798.घ
719.घ 739.ख 759.ख 779.क 799.क
720.ख 740.ख 760.क 780.ग 800.क

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