Ayurveda General Knowledge Questionnaire-16

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Ayurveda General Knowledge Questionnaire-16
चरकसंहिता सूत्रस्थान: आयुर्वेद सामान्य ज्ञान प्रश्नावली-16

(600) चरक ने ‘उदावर्त’के भेद बतलाए है।

(क) 3 (ख) 4 (ग) 6 (घ) 8
(601) चरक ने अष्टौदरीय अध्याय में 5 भेद बाले कुल कितने रोग बताए है।

(क) 9 (ख) 10 (ग) 11 (घ) 12
(602) चरक ने अष्टौदरीय अध्याय में 6भेद बाले कुल कितने रोग बताए है।

(क) 2 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(603) चरकानुसार ज्वर के भेद है।

(क) 2 (ख) 5 (ग) 8 (घ) 7।
(604) चरक ने‘महागद’ की संज्ञा किसे दी है।

(क) उरूस्तंभ (ख) सन्यास (ग) अतत्वाभिनिवेश (घ) हलीमक
(605) चरक के मत से वह त्रिदोषज रोग जो मन व शरीर को अधिष्ठान बनाकर उत्पन्न होता है ?

(क) उरूस्तंभ (ख) सन्यास (ग) अतत्वाभिनिवेश (घ) अपस्मार
(606) चरक के मत से ‘आम और त्रिदोष समुत्थ’ रोग है ?

(क) उरूस्तंभ (ख) सन्यास (ग) महागद (घ) अजीर्ण
(607) दोषा एव हि सर्वेषां रोगाणामेककारणम्- किस आचार्य का कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(608) असात्मेन्द्रियार्थ संयोग, प्रज्ञापराध और परिणाम-चरकानुसार किन रोगों के कारण है।

(क) निज (ख) आगन्तुज (ग) दोनों (घ) कोई नहीं
(609) चरकानुसार पित्त का विशेष स्थान है।

(क) आमाशय (ख) पक्वाशय (ग) नाभि (घ) पक्वामाशयमध्य
(610) चरकानुसार कफ का विशेष स्थान है।

(क) आमाशय (ख) उरः प्रदेश (ग) ऊर्ध्व प्रदेश (घ) हृदय प्रदेश
(611) सुश्रुतानुसार कफ का विशेष स्थान है।

(क) आमाशय (ख) पक्वाशय (ग) उरः प्रदेश (घ) हृदय प्रदेश।
(612) चरक मतेन ‘रस’ किसका स्थान है

(क) वातस्थान (ख) पित्तस्थान (ग) कफस्थान (घ) ब, स दोनो
(613) चरक मतेन ‘आमाशय’ किसका स्थान है

(क) वातस्थान (ख) पित्तस्थान (ग) कफस्थान (घ) ब, स दोनो
(614) ’निम्नलिखित कौन सी व्याधि सामान्यज, नानात्मज दोनों में उल्लेखित है।

(क) उदावर्त (ख) उरूस्तंभ (ग) रक्तपित्त (घ) उर्पयुक्त सभी
(615) ’निम्नलिखित कौन सी व्याधि सामान्यज, नानात्मज दोनों में उल्लेखित नहीं है।

(क) हिक्का (ख) उदावर्त (ग) पाण्डु (घ) कामला
(616) ’तिमिर’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त
(617) ’त्वगवदरण’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त
(618) ’उरूस्तम्भ’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त
(619) ’मन्यास्तम्भ’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त
(620) ’हिक्का’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त
(621) ’विषाद’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) रक्त (घ)कोई नहीं
(622) हृदद्रव, तमःप्रवेश,शीताग्निता क्रमशः किसके नानात्मज विकारहै।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) कफ, रक्त, पित्त (ग) कफ, वात, पित्त (घ) वात, पित्त, रक्त
(623) ’उदर्द’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त
(624) ’धमनीप्रतिचय’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त
(625) 10 रक्तज नानात्मज विकार किसने मानेहै।

(क) शारर्ग्धर (ख) माधव (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(626) ’रक्तपित्त’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ) कोई नहीं
(627) ’रक्तमण्डल’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ) कोई नहीं
(628) ’रक्तकोठकिसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ)उपरोक्त कोई नहीं
(629) ’रक्तनेत्रत्वं’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ)कोई नहीं
(630) चरक नेवात को कौनसी संज्ञा दीहै।

(क) अचिर्न्त्यवीर्य (ख) आशुकारी (ग) अव्यक्त (घ) अमूर्त
(631) ’अष्टौनिन्दतीय’ अध्याय चरकोक्त कौनसेचतुष्क में आता है।

(क) निर्देश (ख) कल्पना (ग) रोग (घ) योजना
(632) चरकानुसार अतिस्थूलता जन्य दोष होते है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(633) निम्न में से कौनसा रोग अतिकृशता के कारण होता है।

(क) गुल्म (ख) अर्श (ग) ग्रहणी (घ) उर्पयुक्त सभी
(634) अतिस्थूलव अतिकृश की चिकित्सा क्रमशःहै।

(क) कर्षण व वृंहण (ख) वृंहण व कर्षण (ग) लंघन व वृंहण (घ) वृंहण व लंघन
(635) अतिस्थूलता की चिकित्सा सिद्वांन्त है।

(क) गुरू आहार व संतर्पण (ख) लघु आहार व संतर्पण (ग) गुरू व अपतर्पण (घ) लघु व अवतर्पण
(636) अतिकृशता की चिकित्सा सिद्वांन्त है।

(क) गुरू आहार व संतर्पण (ख) लघु आहार व संतर्पण (ग) गुरू व अपतर्पण (घ) लघु व अवतर्पण
(637) स्थौल्यकार्श्ये कार्श्य समोपकरणौ हि तो। यद्युभौ व्याधिरागच्छेत् स्थूलमेवाति पीडयेत। -किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) माधव
(638) ’काश्यमेव वरं स्थौल्याद् न हि स्थूलस्य भेषजम्’। – किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) माधव
(639) वाग्भट्ट मतेन कस्यरोगस्य नौषधम् ?

(क) मधुमेह (ख) संयास (ग) स्थौल्य (घ) कार्श्य
(640) ‘स्फिक्, ग्रीवा व उदर शुष्कता’चरकानुसार किसका लक्षण है।

(क) मांस धातु क्षय (ख) मेद धातु क्षय (ग) अतिकार्श्य (घ) अ, स दोनों
(641) अष्टौनिन्दितीय अध्याय में वर्णित रोग है।

(क) दुष्ट रसज (ख) दुष्ट रक्तज (ग) दुष्ट मेदज (घ) दुष्ट मांसज
(642) चरक ने निम्न किसकी चिकित्सा में वृहत पंचमूल का प्रयोग शहद के साथ निर्देशित किया है।

(क) प्रतिश्याय (ख) अतिस्थौल्य (ग) अतिकार्श्य (घ) पित्ताश्मरी
(643) अतिस्थूलता की चिकित्सा में प्रयुक्त औषध नहीं है।

(क) तक्रारिष्ट (ख) यवामलक चूर्ण (ग) शिलाजीत (घ) रसायन, बाजीकरण
(644) यदा तु मनसि क्लन्ति कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा ….. मानवः।।

(क) निद्रां (ख) स्वपिति (ग) जागरति (घ) स्वप्नः
(645) चरकानुसार ‘ज्ञान अज्ञान’ किस पर निर्भर है।

(क) निद्रा (ख) कफ (ग) पित्त (घ) अ, ब दोनो
(646) दिवास्वप्न के योग्य रोगी नहीं है।

(क) तृष्णा (ख) अतिसार (ग) शूल (घ) शोथ
(647) दिवास्वप्न के योग्य ऋतु है।

(क) ग्रीष्म (ख) वर्षा (ग) शिशिर (घ) प्रावृट्
(648) दिवास्वप्न निषेध नहीं है।

(क) मेदस्वी (ख) कण्ठरोगी (ग) दूषीविर्षात (घ) अतिसारी
(649) चरकानुसार ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतु में दिवास्वप्न से किसका प्रकोप होता है।

(क) कफ (ख) कफपित्त (ग) त्रिदोष (घ) वात
(650) सुश्रुतानुसार ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतु में दिवास्वप्न से किसका प्रकोप होता है।

(क) कफ (ख) कफपित्त (ग) त्रिदोष (घ) वात
(651) दिवास्वप्न जन्य विकार है।

(क) हलीमक (ख) गुरूगात्रता (ग) इन्द्रिय विकार (घ) उपर्युक्तसभी
(652) रात्रौ जागरण रूक्षं स्निग्धं प्रस्वपनं दिवा। अरूक्षं अनभिष्यन्दि …..।

(क) प्रजारण (ख) त्वासीनं प्रचलायितम् (ग) भुक्त्वा च दिवास्वप्नं (घ) सम निद्रा
(653) …..समुत्थे च स्थौल्यकार्श्ये विशेषतः।

(क) स्वप्नाहार (ख) रस निमित्तमेव (घ) आहार निद्रा ब्रह्मचर्य (ग) निद्रा
(654) चरक ने अतिनिद्रा की चिकित्सा में निम्न में किसका निर्देश किया है।

(क) शिरोविरेचन (ख) कायविरेचन (ग) रक्तमोक्षण (घ) उपर्युक्तसभी
(655) चरक निद्रानाश के कारण बताएॅ है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(656) चरक निद्रा के भेद माने है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 3
(657) सुश्रुत निद्रा का भेद नहीं माना है।

(क) वैष्णवी (ख) व्याध्यनुवर्तनी (ग) वैकारिकी (घ) तामसी
(658) भूधात्री निद्रा हैं –

(क) तमोभवा (ख) रात्रिस्वभावप्रभवा (ग) वैकारिकी (घ) आगन्तुकी
(659) कौनसी निद्रा व्याधि को निर्दिष्ट नहीं करती है।

(क) श्लेष्मसमुद्भवा (ख) मनःशरीरश्रमसम्भवा (ग) आगन्तुकी (घ) तमोभवा
(660) समसंहनन पुरूष का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(661) स्वस्थ पुरूष का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(662) दशविध निन्दित बालकों का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(663) ‘स्थूल पर्वा’ – किसका लक्षण है।

(क) अतिस्थूल (ख) अतिकृश (ग) दोनों (घ) कोई नहीं
(664) स्थूलता से मुक्त होने के उपाय है।

(क) प्रजागरण (ख) व्यायाम (ग) व्यवाय (घ) उपर्युक्त सभी
(665) रस निमित्तमेव स्थौल्यं कार्श्य च। – किस आचार्य का कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(666) निद्रानाश की चिकित्सा है ?

(क) स्नान (ख) शाल्यन्न (ग) मद्य (घ) उपर्युक्तसभी
(667) निद्रानाश का हेतुनहीं है ?

(क) कार्य (ख) काल (ग) वय (घ) विकार
(668) सुश्रुत निद्रा के भेद माने है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 3
(669) वाग्भट्ट निद्रा के भेद माने है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 3
(670) स्वाभावात् निद्रा- का वर्णन किस आचार्य ने किया है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(671) चरक सूत्रस्थान अध्याय – 22 का नाम है।

(क) महारोगाध्याय (ख) अष्टौनिन्दतीय (ग) संतर्पणीय (घ) लंघन वृंहणीय
(672) लंघन, बृंहण, रूक्षण, स्तम्भन, स्वेदन, स्नेहन – कहलाते है।

(क) षट्कर्म (ख) षट्क्रिया (ग) षट्क्रियाकाल (घ) षड्विध उपक्रम
(673) ‘सर एवंस्थिर’ दोनों गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै।

(क) स्नेहन (ख) लंघन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण
(674) ‘स्निग्ध एवं रूक्ष’ दोनों गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै।

(क) स्नेहन (ख) लंघन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण
(675) ‘स्थूलपिच्छिलम्’गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै।

(क) बृंहण (ख) स्नेहन (ग) स्तम्भन (घ) रूक्षण
(676) ‘प्रायो मन्दं स्थिरं श्लक्षणं द्रव्यं …..उच्यते।

(क) बृंहणम् (ख) स्नेहनम् (ग) स्तम्भनं (घ) रूक्षणम्
(677) प्रायो मन्दं मृ दु च यद् द्रव्यं तत् ….. मतम्।

(क) बृंहणम् (ख) स्नेहनम् (ग) स्तम्भनं (घ) रूक्षणम्
(678) शीतं मन्दं मृदु श्लक्षणं रूक्षं सूक्ष्मं द्रवं स्थिरम्। – कौनसे द्रव्योंके गुण है।

(क) बृंहण (ख) स्नेहन (ग) स्तम्भन (घ) रूक्षण
(679) द्रवं सूक्ष्मं सरं स्निग्धं पिच्छिलम् गुरू शीतलम्। – कौनसे द्रव्योंके गुण है।

(क) बृंहण (ख) स्नेहन (ग) स्तम्भन (घ) रूक्षण
(680)चरक ने लंघन के भेद माने है।

(क) 2 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 3
(681) चरकोक्त लंघन के प्रकारों में द्रव्यरूप लंघन है –

(क) 7 (ख) 10 (ग) 5 (घ) 6
(682) वाग्भट्ट लंघन के भेद माने है।

(क) 2 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 3
(683) शमन किसका भेद है।

(क) चिकित्सा (ख) द्रव्य (ग) लंघन (घ) उपर्युक्तसभी
(684) शमन किसका पर्याय है।

(क) चिकित्सा (ख) द्रव्य (ग) लंघन (घ) उपर्युक्तसभी
(685) येषां मध्यबला रोगाः कफपित्त समुत्थिताः। – में लंघन का कौनसा प्रकार उपयुक्त है।

(क) संशोधन (ख) दीपन (ग) पाचन (घ) आतप सेवन
(686) चरक ने निम्न किस व्याधि में पाचन द्वारा लंघन का निर्देश किया है।

(क) हृदयरोग (ख) अतिसार (ग) विबंध (घ) उपर्युक्तसभी
(687) वातविकार रोगी में लंघन हेतु उपयुक्त ऋतु है।

(क) शिशिर (ख) ग्रीष्म (ग) हेमन्त (घ) बंसत
(688) नित्य स्त्रीमद्यसेवी में बृंहण हेतु उपयुक्त ऋतु है।

(क) शिशिर (ख) ग्रीष्म (ग) हेमन्त (घ) बंसत
(689) किस व्याधि से ग्रसित कार्श्य रोगी को क्रव्यादमांस का प्रयोग करना चाहिए।

(क) शोष (ख) अर्श (ग) ग्रहणी (घ) उपर्युक्तसभी
(690) ‘अभिष्यन्दी रोगी’में कौनसे उपक्रम का प्रयोग करना चाहिए।

(क) स्नेहन (ख) लंघन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण
(691) ‘क्षाराग्निदग्ध रोगी’में कौनसे उपक्रम का प्रयोग करना चाहिए।

(क) स्नेहन (ख) स्तंभन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण
(692) हनुसंग्रहःहृद्वर्चोनिग्रहश्च – किसके अतियोग का लक्षण हैं।

(क) लंघन (ख) स्तंभन (ग) बृंहण (घ) रूक्षण
(693) निम्न में से कौनसा द्रव्य रूक्षता कारक है।

(क) तक्र (ख) खली (ग) पिण्याक (घ) उपर्युक्तसभी
(694) संतर्पणजन्य रोग नहीं है।

(क) पाण्डु (ख) शोफ (ग)क्लैव्य (घ) प्रलाप
(695) अपतर्पणजन्य रोग नहीं है।

(क) ज्वर (ख) विण्मूत्रसंग्रह (ग) उन्माद (घ) हृदयव्यथा
(696) संतर्पण एंव अपतर्पण दोनों जन्य रोग है।

(क) ज्वर (ख) मूत्रकृच्छ्र (ग) अरोचक (घ) कुष्ठ
(697) संतर्पणजन्य की रोगों की चिकित्सा है।

(क) वमन (ख) विरेचन (ग) रक्तमोक्षण (घ) उपयुर्क्त सभी
(698) संतर्पणजन्य की रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त रत्न है।

(क) माणिक्य (ख) प्रवाल (ग) गोमेद (घ) पुखराज
(699) मधु + हरीतिकी किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य
(700) मद्यविकार नाशक खर्जूरादि मन्थ किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य

उत्तरमाला

  1. घ 621. क 641. ग 661. ख 681. ग
  2. क 622. क 642. ख 662. घ 682. क
  3. क 623. ग 643. घ 663. ख 683. घ
  4. ग 624. ग 644. ख 664. घ 684. क
  5. ख 625. क 645. घ 665. ख 685. ख
  6. क 626. ख 646. घ 666. घ 686. घ
  7. घ 627. ख 647. क 667. ग 687. क
  8. ग 628. ख 648. घ 668. घ 688. ख
  9. क 629. क 649. ख 669. ग 689. घ
  10. ख 630. क 650. ग 670. ख 690. घ
  11. क 631. घ 651. घ 671. घ 691. ख
  12. ख 632. घ 652. ख 672. घ 692. ख
  13. घ 633. घ 653. क 673. ग 693. घ
  14. घ 634. क 654. घ 674. ग 694. घ
  15. ग 635. ग 655. क 675. घ 695. क
  16. क 636. ख 656. ख 676. क 696. ग
  17. ख 637. क 657. ख 677. ख 697. घ
  18. क 638. ग 658. ख 678. ग 698. ग
  19. क 639. ग 659. घ 679. ख 699. क
  20. क 640. घ 660. क 680. क 700. ख
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