Ayurveda General Knowledge Questionnaire-19

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Ayurveda General Knowledge Questionnaire-19
चरकसंहिता सूत्रस्थान: आयुर्वेद सामान्य ज्ञान प्रश्नावली-19

(401) त्रिउपस्तम्भ है।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) सत्व, आत्मा, शरीर (घ) हेतु,दोष, द्रव्य
(402) ‘आहार, स्वप्न तथा ब्रह्मचर्य’ – किस आचार्य के अनुसार त्रय उपस्तम्भ हैं।

(क) चरकानुसार (ख) अष्टांग संग्रहानुसार (ग) सुश्रुतानुसार (घ) अष्टांग हृदयानुसार
(403) वाग्भट्टानुसार त्रिउपस्तम्भ है।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, अब्रह्मचर्य (ग) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (घ) सत्व, आत्मा, शरीर
(404) त्रिस्तम्भ है।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) सत्व, आत्मा, इन्द्रिय (घ) हेतु, दोष, द्रव्य
(405) त्रिस्थूणहै।

(क) हेतु, लिंग, औषध (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) वात, पित्त, कफ (घ) सत्व,रज, तम
(406) त्रिविध विकल्पहै।

(क) अतियोग, अयोग, सम्यक्योग (ख) अतियोग, हीनयोग, मिथ्यायोग (ग) अतियोग, अयोग, मिथ्यायोग (घ) सम्यक्योग, हीनयोग, मिथ्यायोग
(407) चरकानुसार त्रिविध रोग है।

(क) वातज, पित्तज, कफज रोग (ख) कायिक, मानसिक, स्वाभाविकरोग (ग) शारीरिक, मानसिक,आगन्तुक रोग (घ) निज, आगन्तुज, मानसरोग
(408) किस इन्द्रिय की व्याप्ति सभी इन्द्रियों में है ?

(क) चक्षु (ख) घ्राण (ग) त्वक् (घ) रासना
(409) देहबल के भेद होतेहै।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 5 (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(410) शाखा में होने वाली व्याधियॉ की संख्या कही गयी है।

(क) 14 (ख) 11 (ग)16 (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(411) त्रिविधं विकल्प वत्रिविधमेव कर्म है।

(क) कर्म (ख) काल (ग) प्रज्ञापराध (घ) प्रवृत्ति
(412) ‘शोष, राजयक्ष्मा’ कौनसे मार्गज व्याधियॉ हैं।

(क) बाहृय रोगमार्ग (ख) मध्यम रोगमार्ग (ग) आभ्यन्तर रोगमार्ग (घ) सर्वरोगमार्ग
(413) विद्रधि, अर्श, विसर्प ,शोथ, गुल्म व्याधियॉ है।

(क) शाखाआश्रित (ख) कोष्ठआश्रित (ग) अस्थिसंधि मर्माश्रित (घ) अ, ब दोनों
(414) पुनः अहितेभ्योऽर्थेभ्यो मनोनिग्रहः – कौनसी औषध है।

(क) दैव व्यापाश्रय (ख) युक्ति व्यपाश्रय (ग) सत्वावजय (घ) शोधन
(415) पुनः आहार औषधद्रव्याणां योजना – कौनसी औषध है।

(क) दैवव्यापाश्रय (ख) युक्तिव्यापाश्रय (ग) सत्वावजय (घ) संशोधन
(416) ‘पल्लवग्राही’ वैद्य कौन होता है।

(क) प्राणभिसर (ख) रोगाभिसर (ग) शास्त्रविद (घ) छद्मर वैद्य
(417) प्रयोग ज्ञान विज्ञान सिद्धि सिद्धाः सुखप्रदाः। – किस वैद्य के गुण है।

(क) जीविताभिसर (ख) रोगाभिसर (ग) सिद्धसाधित (घ) छद्मर वैद्य
(418) तिस्त्रैषणीय अध्याय में कुल त्रित्व है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(419) अष्ट त्रित्व का वर्णन किस आचार्य ने किया है।

(क) पुनर्वसु आत्रेय (ख) मैत्रेय (ग) भिक्षु आत्रेय (घ) कृष्णात्रेय
(420) आचार्य कुश ने वात के कितने गुण बतायेगए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(421) वात का गुण ‘दारूण’ किसने माना है।

(क) कुश (ख) वडिश (ग) वार्योविद (घ) भारद्वाज
(422) प्राकृत शरारस्थ वायु का कर्म नहीं है।

(क) तन्त्रयंत्रधर (ख) सर्वेन्द्रियाणामुद्योजक (ग) समीरणोडग्नेः (घ) सर्वशरीरव्यूहकर
(423) मन का नियंत्रण कौन करता है।

(क) मस्तिष्क (ख) मन (ग) वायु (घ) आत्मा
(424) वायुस्तन्त्रयन्त्रधर – में ‘तंत्र’ का क्या अर्थ है।

(क) मस्तिष्क (ख) शरीर (ग)शरीरवयव (घ) आत्मा
(425) आयुषोऽनुवृत्ति प्रत्ययभूतो- किसका कर्म है।

(क) वायु का (ख) मन का (ग) आत्मा का (घ) मस्तिष्क का
(426) वातकलाकलीय अध्याय में ‘पित्त संबंधी वर्णन’ किसने कियाहै।

(क) काप्य (ख) वडिश (ग) वार्योविद (घ) मरिच
(427) चरकानुसार ज्ञान-अज्ञान में कौनसा दोष उत्तरदायी होता है।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) आम
(428) वायु एंव आत्मा दोनों का पर्याय है।

(क) विभु (ख) विश्वकर्मा (ग) विश्वरूपा (घ) उपर्युक्त सभी
(429) आचार्य चरक के मत से ‘प्रजापति’ किसका पर्याय है।

(क) वायु (ख) आत्मा (ग) शुक्र (घ) अन्न
(430) आचार्य काश्यप ने ‘प्रजापति’ की संज्ञा किसे दीहै।

(क) वायु (ख) आत्मा (ग) शुक्र (घ) अन्न
(431) आचार्य चरकने ’भगवान्’ की संज्ञा किसे दीहै।

(क) वायु (ख) काल (ग) आत्रेय (घ) अ, स दोनो
(432) आचार्य सुश्रुत ने ’भगवान्’ संज्ञा किसे दी है।

(क) वायु (ख) काल (ग) जठराग्नि (घ) उपर्युक्त सभी
(433) स्नेह की योनियॉ है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 8
(434) स्नेह कितनेहोते है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 8
(435) विरेचन हेतु उत्तम तैलहै।

(क) तिल तैल (ख) सर्षप तैल (ग) एरण्ड तैल (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(436) सभी स्नेहों में उत्तम है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(437) ’तैल का सेवन’ का निर्देश किस ऋतु में है।

(क) शरद (ख) प्रावृट (ग) माधव (घ) वर्षा
(438) ’मज्जा सेवन’ का निर्देश किस ऋतु में है।

(क) शरद (ख) प्रावृट (ग) माधव (घ) वर्षा
(439) ’कर्ण शूल’ में लाभप्रद है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(440) चरकानुसार ’शिरःरूजा’ में लाभप्रद है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(441) चरकानुसार ’निर्वापण’ किसका कार्य है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(442) चरकानुसार ’योनिविशोधन’ किसका कार्य है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(443) ’मज्जा’ का अनुपान है।

(क) यूष (ख) मण्ड (ग) पेया (घ) उष्णजल
(444) ’यूष’ किसका अनुपान है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(445) उष्ण काल में दिन में स्नेहपान करने कौन सा रोग हो सकता है।

(क) मूर्च्छा (ख) पिपासा (ग) उन्माद (घ) उपरोक्त सभी
(446) श्लेष्माधिकता में रात्रि में स्नेहपान करने कौन सा रोग नहीं हो सकता है।

(क) अरूचि (ख) आनाह (ग) पाण्डु (घ) कामला
(447) चरकानुसार स्नेह की प्रविचारणायेहोती है।

(क) 57 (ख) 20 (ग) 24 (घ) 64
(448) काश्यपानुसार स्नेह की प्रविचारणायेहोती है।

(क) 57 (ख) 20 (ग) 24 (घ) 64
(449) ‘अच्छपेय स्नेह’ निम्नलिखित में कौन सी कल्पनाहै।

(क) प्रथम कल्पना (ख) प्रथम कल्पना एवंप्रविचारणा (ग) प्रविचारणा (घ) अल्प स्नेहन
(450) ’स्नेह’ की प्रधान मात्रा का निर्देश किसमें नहीं है।

(क) गुल्म (ख) विसर्प (ग)कुष्ठ (घ)सर्पदंष्ट्र
(451) वातरक्त मेंस्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग)उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(452) अतिसार मेंस्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग)उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(453) ’मृदुकोष्ठ’ हेतु स्नेह की कौनसी मात्रा का निर्देशित है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग)उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(454) ‘मंदबिभ्रंशा’ नाम है।

(क) स्नेह की हृस्वमात्रा (ख) स्नेह की मध्यम मात्रा (ग) स्नेह की उत्तममात्रा (घ) स्नेह कीअति मात्रा
(455) स्नेह की कौनसी मात्रा का पाचनकाल अहोरात्रहै।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग) उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(456) स्नेह की हृस्वयसी मात्रा किसने बतलायी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(457) संशोधन हेतु स्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग) उत्तम (घ) उर्पयुक्त सभी
(458) ’कृमिकोष्ठ’ में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(459) ’क्षतक्षीण’ में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(460) नाडीव्रण में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(461) क्रूरकोष्ठ में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) मज्जा (घ) तैल, मज्जा
(462) अस्थि-सन्धि-सिरा-स्नायु-मर्मकोष्ठ महारूजः – में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(463) जिनको वसा सात्म्य है उनको किस स्नेह का सेवन करना चाहिए।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(464) ‘घस्मरा’ व्यक्ति में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा
(465) केवल अच्छस्नेहसेवन से मृदुकोष्ठ व्यक्ति कितनी रात्रि में स्निग्ध हो जाता है।

(क) 5 (ख)2 (ग) 3 (घ) 7
(466) केवल अच्छस्नेहसेवन से क्रूरकोष्ठ व्यक्ति कितनी रात्रि में स्निग्ध हो जाता है।

(क) 5 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 7
(467) ‘अल्पकफा मन्दमारूताग्रहणी’ – किस कोष्ठ के व्यक्ति में होती हैं ? (च.सू.13/69)

(क) मृदुकोष्ठ (ख) मध्य कोष्ठ (ग) क्रूरकोष्ठ (घ) बद्धकोष्ठ
(468) चरकानुसार स्नेह व्यापदों की संख्या है ?

(क) 6 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 19
(469) चरकसंहिता में ‘तक्रारिष्ट’का सर्वप्रथम उल्लेख किसके संदर्भ में आया है।

(क) स्नेहव्यापत्ति भेषज (ख) अर्श चिकित्सा (ग) उदररोग चिकित्सा (घ) ग्रहणी चिकित्सा
(470) चरकानुसार स्नेहपान के कितने दिन बाद वमन कराते है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 7
(471) चरकानुसार स्नेहपान के कितने दिन बाद विरेचन कराते है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 7
(472) ‘पांच प्रसृतिकी पेया’ के घटको में शामिल है।

(क) घृत, तैल (ख) वसा, मज्जा (ग) तण्डुल (घ) उपर्युक्त सभी
(473) ’प्रस्कन्दन’ किसका पर्याय है।

(क) वमन (ख) विरेचन (ग) वस्ति (घ) नस्य
(474) ‘उल्लेखन‘ किसका पर्याय है।

(क) वमन (ख) विरेचन (ग) लेखन (घ) शोधन
(475) विचारणा के योग्य रोगी है।

(क) क्लेशसहा (ख) नित्यमद्यसेवी (ग) मृदुकोष्ठी (घ) उपर्युक्त सभी
(476) चरकानुसारवंक्षण में कौनसा स्वेद कराते हैं।

(क) मृदु स्वेद (ख) मध्यम स्वेद (ग) स्वल्प स्वेद (घ) अल्प स्वेद
(477) वाग्भट्टानुसारवंक्षण में कौनसा स्वेद कराते हैं।

(क) मृदु स्वेद (ख) मध्यम स्वेद (ग) स्वल्प स्वेद (घ) अल्प स्वेद
(478) स्वेदन के अतियोग में ग्रीष्म ऋतु में वर्णित मधुर, स्निग्ध एंव शीतल आहार विहार चिकित्सा किसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(479) स्वेदन के अतियोग शीघ्र शीतोपचार चिकित्सा किसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत, शारंर्ग्धर (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(480) स्वेदन के अतियोग में विसर्प रोग की चिकित्साकिसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत, शारंर्ग्धर (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(481) स्वेदन के अतियोग स्तम्भन चिकित्सा किसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत, शारंर्ग्धर (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(482) स्वेदन के अयोग्य रोगी है।

(क) संधिवात (ख) वातरक्त (ग) गृधसी (घ) कोई नहीं
(483) चरकानुसार किसमें स्वेदन का निषेध है।

(क) नित्य कषाय द्रव्य सेवी (ख) नित्य मधुर द्रव्य सेवी (ग)नित्य कटु द्रव्य सेवी (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(484)चरकानुसार साग्नि स्वेद की संख्या हैं ?

(क) 4 (ख) 8 (ग) 10 (घ) 13
(485) चरकानुसार निराग्नि स्वेद की संख्या हैं ?

(क) 4 (ख) 8 (ग) 10 (घ) 13
(486) चरक ने ’पिण्डस्वेद’ का अंतर्भाव किया गया है।

(क) संकर स्वेद (ख) प्रस्तर स्वेद (ग) नाडी स्वेद (घ) जेन्ताक स्वेद
(487) भावप्रकाश के अनुसार 4 मुर्हूत काल तक किया जाने वाला स्वेद है।

(क) अवगाहन (ख) प्रस्तर स्वेद (ग) नाडी स्वेद (घ) जेन्ताक स्वेद
(488) नाडी स्वेद मे नाडी की आकृति होती है।

(क) घुमावदार (ख) हाथी की सूड समान (ग) ऽ आकार की (घ) सीधी
(489) जेन्ताक स्वेद में कूटागार का विस्तार होता है।

(क) 8 अरत्नि (ख) 16 अरत्नि (ग) 26 अरत्नि (घ) पुरूषसम प्रमाण
(490) हन्सतिका की अग्नि का प्रयोग कौनसे स्वेद में किया जाता है।

(क) कूर्ष (ख)कूप (ग) कुटी (घ) होलाक
(491) चरकानुसार निराग्नि स्वेदहै।

(क) अवगाहन (ख) परिषेक (ग) बहुपान (घ) अध्व
(492) सुश्रुत ने कौनसा निराग्नि स्वेद नहीं माना है।

(क) उपनाह (ख)क्षुधा, भय (ग) मद्यपान (घ) उपर्युक्त सभी
(493) चरकसंहिता के स्वेदाध्याय में कितने स्वेद संग्रह बताए गए है।

(क) त्रयोदश (ख) दश (ग) अष्ट (घ) षट्
(494) अष्टांग संग्रहकार ने उष्म स्वेद के अतंगर्त कितने स्वेदों का वर्णन किया है ?(अ.सू.26/7)

(क) 8 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 13
(495) चरकानुसार वमन विरेचन व्यापदों की संख्या है।

(क) 8 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 15
(496) सुश्रुतानुसार वमन विरेचन व्यापदों की संख्या है।

(क) 8 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 15
(497) ‘मलापह रोगहरं बलवर्णप्रसादनम्’ – किसका कर्म है।

(क) आहार (ख) ओज (ग) रक्त (घ) संसोधन से लाभ
(498) वमन के पश्चात् प्रयुक्त धूम्रपान है।

(क) स्नैहिक (ख) प्रायोगिक (ग) वैरेचनिक (घ) उपर्युक्त सभी
(499) चरकसंहिता के उपकल्पनीय अध्याय में वर्णित संसर्जन क्रम में वमनविरेचन की प्रधानशुद्धि में सर्वप्रथम देय है।

(क) मण्ड (ख) पेया (ग) विलेपी (घ) यवागू
(500) चरक ने विरेचन हेतु त्रिवृत्त कल्क की मात्रा बतलायी है।

(क) 1 पल (ख) 1 अक्ष (ग) 1 प्रसृत (घ) 1 शुक्ति

उत्तरमाला

  1. ख 421. क 441. क 461. घ 481. घ
  2. क 422. ग 442. ख 462. ग 482. ख
  3. ख 423. ग 443. ख 463. ग 483. क
  4. क 424. ख 444. ख 464. घ 484. घ
  5. ग 425. क 445. घ 465. ग 485. ख
  6. ग 426. घ 446. घ 466. घ 486. क
  7. घ 427. ग 447. ग 467. क 487. क
  8. ग 428. घ 448. ख 468. घ 488. ख
  9. ख 429. क 449. क 469. क 489. ख
  10. क 430. घ 450. ग 470. क 490. ग
  11. ग 431. घ 451. ख 471. ग 491. ग
  12. ख 432. घ 452. क 472. घ 492. घ
  13. घ 433. क 453. ख 473. ख 493. घ
  14. ग 434. ग 454. ख 474. क 494. क
  15. ख 435. ग 455. ग 475. घ 495. ख
  16. घ 436. क 456. ग 476. ख 496. घ
  17. क 437. ख 457. ख 477. घ 497. घ
  18. घ 438. ग 458. ख 478. क 498. घ
  19. घ 439. ग 459. क 479. ख 499. घ
  20. ख 440. ग 460. ख 480. ग 500. ख

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