Varna Vichar- Basic Knowledge of Hindi Language
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वर्ण विचार- हिंदी भाषा का बुनियादी ज्ञान
वर्ण विचार
- वर्ण कहलाते है- वह छोटी से छोटी मूल ध्वनि जिसके खण्ड न हो सके, वर्ण कहलाती है। जैसे अ् क् च् ज् त् तथा वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते है।
- हिन्दी वर्णमाला में वर्ण है- 49 (इनमें 11 स्वर, 33 व्यंजन, दो अयोगवाह और तीन संयुक्ताक्षर है)
- अयोगवाह वर्ण कहलाते हैं – स्वर व व्यंजन से बने वर्ण को इसमें पहले स्वर का उच्चारण होता है जैसे अ + ङ = अं और अ + ह = अ:
- संयुक्ताक्षर कहलाते हैं – जो दो व्यंजनों के मेल से बने है। जैसे क्+ष = क्ष, त् + र = त्र और ञ +ज = ज्ञ
- स्वर किसे कहते है- वह वर्ण जो किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से बोले जाते है। इनकी संख्या 11 है।
- हृस्व, मूल या एक मात्रिक स्वर है – जिनके उच्चारण मेें काफी कम समय लगता है। इनकी संख्या चार है। अ इ उ ऋ
- दीर्घ स्वर, संधि स्वर किसे कहते है- वह स्वर जिनके उच्चारण में हृस्व से दुगना समय लगता है। यह दो हृस्व स्वर के मेल से बनने के कारण संधि स्वर भी कहते है।
- प्लुत स्वर किसे कहते है- किसी को दूर से पुकारते समय दीर्घ स्वर से भी अधिक शब्द लगता है। ऐसे स्वर को प्लुत स्वर कहते है। जैसे ओ ३ म में ३ का चिह्न प्लुत स्वर है। इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते है। वर्तमान हिन्दी में प्लुत स्वर का प्रचलन बंद हो गया है।
- व्यंजन कहते हैं – जो वर्ण स्वरों की सहायता के बिना न बोले जा सके उन्हें व्यंजन कहते है।
- व्यंजन कितने प्रकार के होते है- तीन प्रकार के (स्पर्श, अंत:स्थ, उष्म)
- स्पर्श व्यंजन की परिभाषा है – क से म तक 25 वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते है। इनका उच्चारण करते समय जिह्वा का कंठ आदि से उच्चारण स्थानों से पूरा स्पर्श होता है।
- ईषत/अंत:स्थ व्यंजन अथवा अर्ध स्वर व्यंजन कहलाते हैं – य, र, ल, व को अंत:स्थ व्यंजन कहते है। यह आधे स्वर और आधे व्यंजन कहलाते है। इनके उच्चारण में जिह्वा विशेष सक्रिय नहीं रहती है।
- ईषत/विवृत उष्म व्यंजन की परिभाषा है – श, ष, स, ह को उष्म व्यंजन कहा गया है। इनके उच्चारण में श्वांस की प्रबलता के कारण एक प्रकार की गर्मी उत्पन्न होती है।
- विवृत स्वर है – आ (इसे बोलते वक्त मुख सर्वाधिक खुला हुआ होता है)
- संवृत स्वर है – केवल हृस्व अ को इसके अंतर्गत माना गया है। हालांकि विद्धानों ने इ ई उ ऊ को भी इसके अंतर्गत माना है (जिह्वा का अग्र भाग स्वरों के उच्चारण के लिए अधिकतम ऊंचाई पर होता है)
- अल्प प्राण शब्द कहलाते है- जिनके उच्चारण में कम समय लगता है। पंचम वर्ग के प्रथम, तृतीय व पंचम वर्ण और य र ल व को अल्प प्राण शब्द कहा जाता है।
- महाप्राण शब्द है – इसमें पंचम वर्ग के दूसरे व चौथे और श ष स ह को लिया जाता है।
- घोष ध्वनि की परिभाषा है – पंचम वर्ग के तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम तथा य र ल व ह घोष ध्वनि है।
- अघोष ध्वनि कहलाती है- पंचम वर्ग का प्रथम व द्वितीय तथा श ष स और विसर्ग अघोष ध्वनि कहलाती है।
- अनुनासिक और अनुस्वार में दीर्घ ध्वनि किसमें होती है- अनुस्वार में
- हिन्दी शब्दकोष में शब्दों का क्रम होता है – अं अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ क क्ष ख ग घ च छ ज ज्ञ झ ट ठ ड ढ त त्र थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह
- उत्क्षिप्त व्यंजन है – ड और ढ
- ध्वनि संकेतों के मौखिक व लिखित रूप को कहा जाता है – वर्ण
- वे ध्वनियां जिनके उच्चारण में हवा निर्बाध रूप से मुख या नाक से बाहर निकल जाती है, कहलाती है ? – स्वर
- अ आ ओ एवं ए में मध्य स्वर है – अ
- जिस स्वर के उच्चारण में मुख सर्वाधिक खुला हुआ होता है कहलाता है- विवृत स्वर
- स्वरों का सुमेल –
- पश्च स्वर = आ, उ, ऊ, ओ
- वृताकार स्वर=उ, ऊ, ओ, औ
- संवृत स्वर = इ, ई, उ, ऊ
- दीर्घ स्वर = ए, ऐ, ओ, औ
हृस्व और दीर्घ स्वरों का विभाजन किस आधार पर हुआ है – समय के आधार पर
जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वांस जिह्वा के दोनों ओर से निकल जाती है, कहलाती है – पार्श्विक
सुमेलित है - मूर्धन्य = ट, ठ, ड, ढ, ण
- उष्म = श, ष, स
- कोमल तालव्य = क, ख, ग, घ, ङ
ड ढ किस व्यंजन वर्ग की ध्वनियां है- मूर्धन्य व उत्क्षिप्त
च व्यंजन वर्ग की ध्वनियां कहलाती है – तालुवस्त्र्य
वर्गो के प्रथम, तृतीय व पंचम वर्ण है – अल्प प्राण
वर्गो के द्वितीय व चतुर्थ वर्ण है – महाप्राण
अनुस्वार किन ध्वनियों को कहा जाता है – स्वर के बाद आने वाली नासिक्य ध्वनियां
सुमेलित है –
-लुंठित व्यंजन है – र - पार्श्विक व्यंजन – ल
- काकल्य ध्वनि – ह
- वत्स्र्य व्यंजन – न, ल, स