Basic Knowledge of Hindi Language Part-4
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हिंदी भाषा का बुनियादी ज्ञान भाग -4
भाव और रस में अंतर है –
- भाव का सम्बन्ध रज, तम, सतो गुण से है रस में सत्व का उद्रेक होता है।
- भाव का उदय मनुष्य ह्दय से, रस आस्वादन आनंद रूप में होता है।
- रस की अनुभूति शाश्वत पर भावों की अनुभूति क्षणिक होती है।
- रस का उदय अद्वेत रूप में जबकि भावों का उदय खण्ड रूप में होती है।
शृंगार रस का परिचय है – विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से पति-पत्नी का या प्रेमी-प्रेमिका का रति स्थायी भाव शृंगार रस कहलाता है। यह रस विष्णु देवता से सम्बन्धित है। इसके आश्रय और आलम्बन नायक-नायिका है।
शृंगार रस के भेद है- संयोग और वियोग
वियोग शृंगार के भेद है – पूर्वराग, मान, प्रवास, अभिशाप (करूण विरह)
हास्य रस का परिचयन है – हास्य रस का स्थायी भाव हास हे। इसका आलम्बन विलक्षण प्राणी या हंसी जगाने वाली वस्तु तथा आश्रय दर्शक है। इस रस के देवता प्रमथ है।
हास्य रस के भेद है – स्मित, हसित, विहसित, अपहसित, प्रतिहसित
अपहसित का अभप्राय है – हंसते-हंसते नेत्र से आंसू निकल पडे।
प्रतिहसित का अर्थ है – सारा शरीर हिले और लोटपोट हो जाए।
करूण रस का परिचय है – करूण रस का स्थायी भाव शोक है। दु:खी, पीड़ित या मृत व्यक्ति आलम्बन विभाव और उससे सम्बन्ध रखने वाली वस्तुओं को तथा अन्य सम्बन्धियों को देखना उद्दीपन विभाव है।
वियोग शृंगार और करूण रस में अंतर है – - वियोग शृंगार में मिलन की आस रहती है किंतु करूण रस में आस समाप्त हो जाती है।
- वियोग शृंगार के देवता श्याम है जबकि करूण रस के देवता यम है।
- वियोग शृंगार सुखात्मक भी होता है जबकि करूण रस पूरी तरह दुखात्मक होता है।
वीर रस का परिचय है- कठिन कार्य (शत्रु के अपकर्ष, दीन दुर्दशा या धर्म की दुर्गती मिटाने) के करने का जो तीव्र भाव ह्दय में उत्पन्न होता है उसे उत्साह कहते है। यही उत्साह विभा, अनुभाव और संचारियों के योग से वीर रस में तब्दील हो जाता है।
वीर रस के भेद है -युध्द वीर, दानवीर, दयावीर और धर्मवीर
रोद्र रस की परिभाषा दीजिए- रोद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। अपने विरोधी अशुभ चिंतक आदि की अनुचित चेष्टा से अपने अपमान अनिष्ठ आदि कारणों से क्रोध उत्पन्न होता है वह उद्दीपन विभाव, मुष्टि प्रहार अनुभाव और उग्रता संचारी भाव से मेल कर रोद्र रस बन जाता है।