Ayurveda General Knowledge Questionnaire-6
चरकसंहिता: आयुर्वेद सामान्य ज्ञान प्रश्नावली-6
(501) चरकानुसार ‘आध्मानमरूचिश्छर्दिरदौर्बल्यं लाघवम्’ – किसका लक्षण हैं।
(क) सम्यग्विरिक्त (ख) अविरिक्त (ग) दुर्विरिक्त (घ) वमनेऽति
(502) चरकानुसार ‘दौर्बल्यं लाघवं ग्लार्निव्याधिनामणुता रूचिः’ – किसकालक्षण हैं।
(क) सम्यग्विरिक्त (ख) अविरिक्त (ग) दुर्विरिक्त (घ) वमनेऽति
(503) “दोषाः कदाचित् कुप्यन्ति जिता लंघनपाचनैः। जिताः संशोधनैर्ये तु न तेषां पुनरूद्भवः”- किस आचार्य का कथन है।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(504) संशोधन के अतियोग की चिकित्सा हैं।
(क) सर्पिपान (ख) मधुरौषधसिद्ध तैल का पान (ग) अनुवासन वस्ति (घ) उपरोक्त सभी
(505) ‘उर्ध्वगत वातरोग एवं वाक्ग्रह’- किसके अतियोग के लक्षण हैं।
(क) वमन (ख) विरेचन (ग) दोनों (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(506) चरक संहिता में ‘स्वभावोपरमवाद’ का वर्णन कहॉ मिलता है।
(क) चू.सू.अ.15 (ख) चू.सू.अ.16 (ग) चू.सू.अ.17 (घ) चू.सू.अ.18
(507) “स्वभावात् विनाशकारणनिरपेक्षात् उपरमो विनाशः स्वभावोपरमः।” – किसका कथन है।
(क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) आत्रेय (घ) वाग्भट्ट
(508) ‘स्वभावोपरमवाद’ का मुख्य अभिप्राय है।
(क) स्वभावेन निरोध (ख) स्वभावेन प्रकृतिः (ग) स्वभावेन वृद्धि (घ) स्वभावेनोत्पत्तिः
(509) जायन्ते हेतु वैषम्याद् विषमा देहधातवः। हेतु साम्यात् समास्तेषां …..सदा।।
(क) वृद्धि (ख) हानि (ग) स्वभावोपरमः (घ) सम
(510) याभिः क्रियाभिः जायन्ते शरीरे धातवः समाः। सा ….. विकारणां कर्म तत् भिषजां मतम्।।
(क) भेषज (ख) चिकित्सा (ग) औषध (घ) दोषाणां
(511) चरक के मत से शिरोरोग का सामान्य कारण नहींहै।
(क) दिवास्वप्न (ख) रात्रि जागरण (ग) प्रजागरण (घ) प्राग्वात
(512) शिर को उत्तमांग की संज्ञा किसने दी है।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(513) माधव निदान के अनुसार शिरो रोगोंकी संख्या है ?
(क) 5 (ख) 10 (ग) 11 (घ) 13
(514) ‘शीतमारूतसंस्पर्शात्’ कौनसे रोग का निदान है ?
(क) वातिक शिरोरोग (ख) शीतपित्त (ग) दोनों (घ) कोई नहीं
(515) ‘मद्य सेवन्’ से कौनसा शिरोरोग होताहै ?
(क) वातज (ख)पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(516) ‘आस्यासुखैः स्वप्नसुखैर्गुरूस्निग्धातिभौजनै’ – कौनसे रोग का निदानहै ?
(क) कफजशिरोरोग (ख) प्रमेह (ग) मधुमेह (घ) उपर्युक्त सभी
(517) ‘आस्यासुखं स्वप्नसुखं दधीनि ग्राम्यौदकानूपरसाः पयांसि’ – कौनसे रोग कानिदानहै ?
(क) कफज शिरोरोग (ख) वातरक्त (ग) प्रमेह (घ) उपर्युक्त सभी
(518) ‘व्यधच्छेदरूजा’ कौनसे शिरोरोग का कारणहै।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कृमिज (घ) सन्निपातज
(519) आचार्य सुश्रुत ने कौनसा हृदय रोगनहीं माना है।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कृमिज (घ) सन्निपातज
(520) “दर” (हदय में मरमर ध्वनि की प्रतीति होना) – कौनसे हृदय रोग का लक्षण हैं।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) कृमिज
(521) कफज हृद्रोग का निदान है।
(क) चिन्तन (ख) अतिचिन्तन (ग) अचिन्तन (घ) उपर्युक्त सभी
(522) हृदयं स्तब्धं भारिकं साश्मगर्भवत्- किसका लक्षण है ?
(क) कफज हृदय रोग (ख) कफज अर्बुद (ग) वातिक ग्रहणी (घ) कफज ग्रहणी
(523) चरकानुसार ‘सान्निपातिक हृद्रोग’ होता है।
(क) साध्य (ख) कष्टसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय
(524) चरक के मत से दोष के विकल्प भेद होते है।
(क) 57 (ख) 62 (ग) 63 (घ) 3
(525) चरकानुसार क्षय के भेद होते है।
(क) 5 (ख) 10 (ग) 2 (घ) 18
(526) सुश्रुतानुसार क्षय के भेद होते है।
(क) 5 (ख) 10 (ग) 2 (घ) 18
(527) चरकानुसार निम्नलिखित मे कौनसा रस क्षय का लक्षण नहीं है।
(क) शूल्यते (ख) घट्टते (ग) हृदयं ताम्यति (घ) हृदयोक्लेद
(528) परूषा स्फिटिता म्लाना त्वग् रूक्षा’ किस क्षय के लक्षण है।
(क) रसक्षय (ख) कफक्षय (ग) रक्तक्षय (घ) मज्जाक्षय
(529) चरकानुसार ‘संधिस्फुटन’ कौनसी धातु केक्षय का लक्षण है।
(क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा
(530) चरकानुसार ‘संधिशैथिल्य’ कौनसी धातु केक्षय का लक्षण है।
(क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा
(531) चरकानुसार ‘शीर्यन्त इव चास्थानि दुर्बलानि लघूनि च। प्रततं वातरोगीणि’ – लक्षण है।
(क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा
(532) ‘दौर्बल्यं मुखशोषश्च पाण्डुत्वं सदनं श्रमः’ – चरकानुसार कौनसी धातु केक्षय का लक्षण है।
(क) रस (ख) शुक्र (ग) मूत्र (घ) रक्त
(533) चरकानुसार ‘पिपासा’ किसके क्षय का लक्षण है।
(क) रस (ख) शुक्र (ग) मूत्र (घ) रक्त
(534) विभेति दुर्बलोऽभीक्ष्णं व्यायति व्यधितेन्द्रियः। दुश्छायो दुर्मना रूक्षः क्षामश्चैव – चरकानुसारकिसका लक्षण है।
(क) ओजनाश (ख) ओजक्षय (ग) ओजविस्रंस (घ) ओजच्युति
(535) चरकानुसार गर्भस्थ ओज का वर्ण होता है।
(क) सर्पिवर्ण (ख) मधुवर्ण (ग) रक्तमीषत्सपीतकम् (घ) श्वेत वर्ण
(536) चरकानुसार हदयस्थ ओज का वर्ण होता है।
(क) सर्पिवर्ण (ख) मधुवर्ण (ग) रक्तमीषत्सपीतकम् (घ) श्वेत वर्ण
(537) ‘तन्नाशान्ना विनश्यति’ – चरक ने किसके संदर्भ में कहा गया है।
(क) रक्त (ख) ओज (ग) शुक्र (घ) प्राणायतन
(538) प्रथमं जायते ह्योजः शरीरेऽस्मन् शरीरिणाम्।- किस आचार्य का कथन है।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(539) मधुमेह के निदान एंव सम्प्राप्ति का वर्णन चरक संहिता के किस स्थान में मिलता है।
(क) सूत्र स्थान (ख) निदान स्थान (ग) चिकित्सा स्थान (घ) विमान स्थान
(540) तैरावृत्तगतिर्वायुरोज आदाय गच्छैति। यदा बस्तिं ….. मधुमेहः प्रवर्तते ?(च.सू.17/80)
(क) तदासाध्यो (ख) तदा कृच्छ्रो (ग) तदा याप्यो (घ) तदासाध्यो
(541) मधुमेह की उपेक्षा करने से शरीर के किस स्थान पर दारूण प्रमेहपिडिकाए उत्पन्न हो जाती है।
(क) मांसल प्रदेश में (ख) मर्म स्थानमें (ग) संधियों में (घ) उपर्युक्त सभी
(542) प्रमेहपिडका की संख्या 9 किसने बतलायी है।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) भोज
(543)”कुलत्थिका” नामक प्रमेह पिडिका का वर्णन किस आचार्य ने किया हैं।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) भोज
(544)”अरूंषिका” नामक प्रमेह पिडिका का वर्णन किस आचार्य ने किया हैं।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) भोज
(545) पिडका नातिमहतीक्षिप्रपाका महारूजा।- प्रमेह पिडिका है।
(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता
(546) पृष्ठ और उदर में होने वाली प्रमेह पिडिका है।
(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता
(547) ‘रूजानिस्तोदबहुला’कौनसीप्रमेहपिडका का लक्षण है।
(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता
(548) ‘विसर्पणी’ प्रमेहपिडका है।
(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता
(549) ‘महती नीला’ प्रमेहपिडका है।
(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता
(550) ‘कृच्छ्रसाध्य’ प्रमेहपिडका नहीं है।
(क) शराविका (ख) कच्छपिका (ग) जालिनी (घ) विनता
(551) चरकानुसार विद्रधि के कितने भेद होते है।
(क) 2 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 8
(552) सुश्रुतानुसार विद्रधि के कितने भेद होते है।
(क) द्विविध (ख) पंचविध (ग) षड्विध (घ) सप्तविध
(553) ‘जृम्भा’ कौनसी विद्रधि का लक्षण है ?
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) त्रिदोषज
(554) ‘वृश्चिक दंश सम वेदना’ किसकालक्षण है।
(क) पच्यमान विद्रधि (ख) पच्यमान शोफ (ग) आमवात (घ) उपरोक्त सभी
(555) “तिल, माष, एवं कुलत्थके क्वाथ के समान स्राव निकलना”- कौनसी दोषज विद्रधि का लक्षण है।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(556) अभ्यांतर विद्रधि का कौनसा स्थान चरक ने नहीं माना है।
(क) कुक्षि (ख)गुदा (ग) वंक्षण (घ) वृक्क
(557) ‘हिक्का’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।
(क) हृदय (ख)यकृत (ग) प्लीहा (घ) नाभि
(558) ‘उच्छ्वासापरोध’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।
(क) हृदय (ख) यकृत (ग) प्लीहा (घ) नाभि
(559) ‘पृष्ठकटिग्रह’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।
(क) कुक्षि (ख)वस्ति (ग) वंक्षण (घ) वृक्क
(560) ‘सक्थिसाद’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।
(क) कुक्षि (ख)वस्ति (ग) वंक्षण (घ) वृक्क
(561) ‘वातनिरोध’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।
(क) कुक्षि (ख) वस्ति (ग) वंक्षण (घ) गुदा
(562) क्रियाशरीरे दोषाणां कतिधा गतयः ?
(क) दशः (ख) नवः (ग) षट् (घ) पंचदशः
(563) आशयापकर्ष दोषों की कितनी गतियॉ होतीहै।
(क) 05 (ख) 07 (ग) 10 (घ) 09
(564) चरकानुसार प्राकृत श्लेष्मा कहलाता हैं।
(क) बल (ख) ओज (ग) स्वास्थ्य (घ) अ, ब दोनों
(565) चरकानुसार दोषों की त्रिविध गतियों में सम्मिलित नहीं हैं।
(क) ऊर्ध्व गति (ख) अधः गति (ग) तिर्यक् गति (घ) विषम गति
(566) चरकानुसार दोषों की त्रिविध गतियों में सम्मिलित नहीं हैं।
(क) क्षय (ख) वृद्धि (ग) स्थान (घ) प्रसर
(567) सर्वा हि चेष्टा वातेन स प्राणः प्राणिनां स्मृतः। – सूत्र किस अध्याय में वर्णित है।
(क) वातकलाकलीय (ख) वातव्याधिचिकित्सा (ग) दीर्घजीवतीय (घ) कियन्तःशिरसीय
(568) चरक ने शोथ के भेद कितने माने है।
(क) 3 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(569) शोथ के पृथु, उन्नत और ग्रंथित भेद किसने माने है।
(क) चरक (ख) माधव (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(570) शोथ के उर्ध्वगत, मध्यगत और अधोगत भेद किसने माने है।
(क) चरक (ख) माधव (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(571) कौनसा शोथ दिवाबली होता है।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(572) कौनसा शोथ ‘सर्षपकल्कावलिप्त’ होता है।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(573) ‘पूर्व मध्यात् प्रशूयते’- कौनसा शोथ का लक्षणहै।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(574) ‘शोथो नक्तं प्रणश्यति’- कौनसा शोथ का लक्षणहै।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(575) ‘निपीडतो नोन्नमति श्वयथु’- कौनसा शोथ का लक्षणहै।
(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज
(576) चरक ने शोथ के उपद्रव कितने माने है।
(क) 9 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(577) चरकानुसार निम्नलिखित में कौन सा शोथ का उपद्रव नहीं है।
(क) छर्दि (ख) ज्वर (ग) श्वास (घ) दाह
(578) जो शोथ पुरूष अथवा स्त्री के गुह्य स्थान से उत्पन्न होकर सम्पूर्ण शरीर फैल जाये वह शोथ …..होता है।
(क) साध्य (ख) कष्टसाध्य (ग) याप्य (घ) असाध्य
(579) प्रकुपित कफ गले अन्तःप्रदेश में जाकर स्थिर हो जाये, शीघ्र ही शोथ उत्पन्न कर दे तो वह है ?
(क)गुल्म (ख) गलगण्ड (ग) गलग्रह (घ) गलशुण्डिका
(580) गलशुण्डिका में शोथ का स्थान होता है ?
(क) जिहृवा मूल (ख) जिहृवा अग्र (ग) काकल प्रदेश (घ) गल प्रदेश
(581) यस्य पित्तं प्रकुपितं त्वचि रक्तेऽवतिष्ठते – किसके लिए कहा गया है।
(क) विसर्प (ख) पिडका (ग) पिल्लु (घ) नीलिका
(582) यस्य श्लेष्मा प्रकुपितो गलबाह्योऽवतिष्ठते शनैः संजनयेच्छोफं – है।
(क) गलगण्ड (ख) गलग्रह (ग) रोहिणी (घ) गण्डमाला।
(583) तीनों दोष एक ही समय में एक स्थान प्रकुपित होकर जिहृवामूल में कौनसा भंयकर शोथ उत्पन्न करते है।
(क) गलगण्ड (ख) गलग्रह (ग) रोहिणी (घ) कर्णमूलशोथ
(584) उदररोगशोथ में दोष अधिष्ठान का स्थान होता है।
(क) आमाशय (ख) पक्वाशय (ग) त्वङ्मांसान्तर आश्रित (घ) महास्रोत्रस
(585) चरकानुसार ‘आनाह’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है
(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष
(586) चरकानुसार ‘कर्णमूलशोथ’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होताहै
(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष
(587) चरकानुसार ‘उपजिह्न्का शोथ’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है
(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष
(588) चरकानुसार ‘रोहिणी’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है
(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष
(589) चरकानुसार ‘शंखक शोथ’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है
(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष
(590) चरक संहिता में शंखक शोथ का वर्णन कहॉ मिलता है।
(क) त्रिशोधीय अध्याय (ख) त्रिमर्मीय चिकित्साअध्याय (ग) त्रिमर्मीयसिद्धिअध्याय (घ) कोई नहीं
(591) चरक संहिता में शंखक रोग का वर्णन कहॉ मिलता है।
(क) त्रिशोधीय अध्याय (ख) त्रिमर्मीय चिकित्साअध्याय (ग) त्रिमर्मीयसिद्धिअध्याय (घ) कोई नहीं
(592) त्रिरात्रं परमं तस्य जन्तोः भवति जीवितम्। कुशलेन त्वनुक्रान्तः क्षिप्रं संपद्यते सुखी – किसके लिए कहा गया है।
(क) शंखक रोग (ख) रोहिणी (ग) रक्तज अधिमन्थ (घ) उर्पयुक्त सभी
(593) मेधा किस दोष का कर्म है।
(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) कोई नहीं
(594) ‘न हि सर्वविकाराणां नामतोऽस्ति धुर्वा स्थितिः’ का वर्णन कहॉ है।
(क) च.सू.अ.16 (ख) च.सू.अ.17 (ग) च.सू.अ.18 (घ) च.सू.अ.19
(595) त एवापरिसंख्येया ….. भवनि हि।
(क) भिद्यमाना (ख) छिद्यमाना (ग) विद्यमाना (घ) रूद्ररूपा
(595) चरकानुसार सामान्यज रोगों की संख्याहै।
(क) 40 (ख) 80 (ग) 48 (घ) 56
(596) चरकानुसार ‘ग्रहणीद्रोष’के भेद होते है।
(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(597) चरकानुसार ‘प्लीह दोष’के भेद होते है।
(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(598) ‘तृष्णा’के भेद होते है।
(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(599) चरक ने ‘प्रतिश्याय’के भेद बतलाए है।
(क) 6 (ख) 5 (ग)4 (घ) 3
(600) चरक ने ‘अरोचक’के भेद बतलाए है।
(क) 5 (ख) 4 (ग) 6 (घ) 3
(600) चरक ने ‘उदावर्त’के भेद बतलाए है।
(क) 3 (ख) 4 (ग) 6 (घ) 8
उत्तरमाला
501.ख 521.ग 541.घ 561.घ 581.ख
502.क 522.क 542.घ 562.ख 582.क
503.क 523.ख 543.घ 563.ग 583.ग
504.घ 524.ख 544.ग 564.क 584.ग
505.क 525.घ 545.ग 565.घ 585.क
506.ख 526.ग 546.घ 566.घ 586.ख
507.ख 527.घ 547.क 567.घ 587.ग
508.क 528.ग 548.ग 568.क 588.घ
509.ग 529.ख 549.घ 569.घ 589.ख
510.ख 530.ग 550.घ 570.ख 590.क
511.ग 531.घ 551.क 571.क 591.ग
512.क 532.ख 552.ग 572.क 592.ख
513.ग 533.ग 553.ग 573.ख 593.ख
514.ग 534.ख 554.घ 574.क 594.ग
515.ख 535.क 555.ख 575.ग 595.ग
516.क 536.ग 556.ख 576.घ 596.क
517.ग 537.ख 557.घ 577.घ 597.ख
518.ग 538.क 558.ग 578.ख 598.ख
519.घ 539.क 559.घ 579.ग 599.ग
520.क 540.ख 560.ग 580.ग 600.क