Ayurveda General Knowledge Questionnaire-4

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चरकसंहिता: आयुर्वेद सामान्य ज्ञान प्रश्नावली-4

(301) चरक के मत से अधारणीय वेगों की संख्या है ?

(क) 6 (ख) 11 (ग) 13 (घ) 14
(302) ‘कास’ को अधारणीय वेग किसने माना है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शांर्रग्धर
(303) वाग्भट्ट निम्न में से कौनसा अधारणीय वेग नहींमाना है।

(क) उद्गार (ख) क्षवथु (ग) कास (घ) श्रमः निश्वास
(304) ‘शिरोरूजा’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) शुक्र (घ) उपर्युक्त सभी
(305) ‘पिण्डिकोद्वेष्टन’ किसके वेगावरोधका लक्षण है ?

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) शुक्र (घ) श्रमःनिश्वास
(306) ‘हृद् व्यथा’ लक्षण किसमें मिलता है।

(क) शुक्र वेग निग्रह (ख) शुक्र व पुरीष वेग निग्रह
(ग) शुक्र व पिपासा वेग निग्रह (घ) क्षुधा व पिपासा वेग निग्रह

(307) स्वेदन, अवगाहन, अभ्यंग का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) शुक्रवेग निग्रह (घ) अधोवात वेग निग्रह
(308) चरकानुसार पुरीषवेगनिग्रह किसकी चिकित्सा का क्रमहै।

(क) स्वेदन, अवगाहन, अभ्यंग (ख) स्वेदन, अभ्यंग, अवगाहन (ग) अभ्यंग, अवगाहन, स्वेद (घ) अभ्यंग, अवगाहन
(309) अभ्यंग, अवगाहन का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) शुक्रवेग निग्रह (घ) उपर्युक्त सभी
(310) आचार्य चरकानुसार मूत्रवेगनिग्रह की चिकित्सा में देय बस्तिहै।

(क) अनुवासन बस्ति (ख) निरूह बस्ति (ग) उत्तर बस्ति (घ) त्रिविध बस्ति
(311) चरक के मत से शुक्रवेगनिग्रह की चिकित्सा में देय बस्तिहै।

(क) अनुवासन बस्ति (ख) निरूह बस्ति (ग) उत्तर बस्ति (घ) त्रिविध बस्ति
(312) ‘प्रमाथि अन्नपान’का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) छर्दि वेग निग्रह (घ) क्षवथु वेग निग्रह
(313) ‘रूक्षान्नपान’का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) छर्दि वेग निग्रह (घ) क्षवथु वेग निग्रह
(314) ‘अवपीडक सर्पिपान’ का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) छर्दि वेग निग्रह (घ) क्षवथु वेग निग्रह
(315) चरकानुसार किस वेगरोधजन्य व्याधि में ‘भोजनोत्तर घृतपान’ करतेहै।

(क) क्षवथु (ख) उदगार (ग) पिपासा (घ) क्षुधा
(316) ‘विण्मूत्रवातसंग’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) शुक्र (घ) अधोवात
(317) ‘विनाम’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) क्षवथु (घ) मूत्र एवंजृम्भा
(318) ‘शिरोरोग’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) पुरीष, क्षवथु
(319) ‘हृद्रोग’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) वाष्प (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) जृम्भा
(320) ‘अर्दित’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) उदगार
(321) ‘कुष्ठ, विसर्प’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) उदगार
(322) ‘बाधिर्य’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) क्षुधा (ख) पिपासा (ग) निद्रा (घ) श्रमः निश्वास
(323) ‘भ्रम’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) क्षुधा (ख) बाष्प (ग) निद्रा (घ) अ, ब दोनों
(324) ‘मद्य/मदिरा पान’ किसकी चिकित्सा में है।

(क) वाष्पवेगधारण (ख) निद्रावेग धारण (ग) शुक्रवेग धारण (घ) अ, स दोनो में
(325) ‘भुक्त्वा प्रच्छर्दनं’ का निर्देश किसके वेगनिग्रह की चिकित्सा में है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ)उदगार
(326) ‘रक्तमोक्षण’ का निर्देश किसके वेगनिग्रह की चिकित्सा में है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ)उदगार
(327) ‘चरणायुधा’ किसका पर्यायहै।

(क) कुक्कुट (ख) मयूर (ग) काक (घ) कबूतर
(328) जृम्भा वेगधारण मे कौनसी चिकित्सा की जाती है।

(क) वातघ्न (ख) वातपित्तघ्न (ग) कफपित्तघ्न (घ) त्रिदोषघ्न
(329) ‘वातघ्न’किसके वेगनिग्रह की चिकित्सा में है।

(क) क्षवथु (ख) जृम्भा (ग) श्रमः निश्वास (घ) उपर्युक्त सभी
(330) ‘वाणी’ के धारणीय वेगों की संख्या है।

(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 9
(331) ‘मन’ के धारणीय वेगों की संख्या है।

(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 9
(332) ‘अभिध्या’ किसका धारणीय वेग है।

(क) मन (ख) वाणी (ग) शरीर (घ) उपर्युक्त को ई नहीं
(333) ‘स्तेय’ किसका धारणीय वेग है।

(क) मन (ख) वाणी (ग) शरीर (घ) उपर्युक्त को ई नहीं
(334) शरीरायासजननं कर्म व्यायाम उच्यते – किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(335) दिनचर्या के अन्तर्गत ‘व्यायाम’ का वर्णन किस ग्रन्थ में नही है।

(क) चरकसंहिता (ख) सुश्रुतसंहिता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग हृदय
(336) चरक के अनुसार व्यायाम कब तक करना चाहिए।

(क) बलार्द्ध (ख) मात्रानुसार (ग) अर्द्धशक्ति (घ) मन्दशक्ति
(337) सुश्रुत के अनुसार व्यायाम कब तक करना चाहिए।

(क) बलार्द्ध (ख) मात्रानुसार (ग) अर्द्धशक्ति (घ) मन्दशक्ति
(338) व्यायाम करने से मेद का क्षय होता है – यह किस आचार्य ने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(339) चरकानुसार अतिव्यायाम से हो सकता है –

(क) प्रतमक श्वास (ख) वमन (ग) रक्तपिक्त (घ) उपर्युक्त सभी
(340) निम्न में से कौनसा एक लक्षण बलार्द्ध व्यायाम का नहीं है।

(क) मुखशोष (ख) ललाट प्रदेश में स्वेद (ग) कक्षा प्रदेश में स्वेद (घ) हृद्स्पन्दन में वृद्धि
(341) बुद्धिमान व्यक्ति को कौनसा कार्य अति मात्रा में नहीं करना चाहिए।

(क) व्यायाम (ख) ग्राम्यधर्म (ग) हास्य (घ) उपर्युक्त सभी
(342) “वातलाद्याः सदातुराः” -किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(343) “वातिकाद्याः सदाऽऽतुराः”- किसका कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(344) आचार्य चरक ने बर्हिमुख स्रोत्रस को कहा है।

(क) मलायन (ख) मलायतन (ग) दोनों (घ) कोई नहीं
(345) चरकानुसार कफ का निर्हरण किस मास में करना चाहिए।

(क) चैत्र (ख) श्रावण (ग) अगहन (घ) पौष
(346) चरक मतानुसार पित्त का निर्हरण विरेचन द्वारा किस मास में करना चाहिए ?

(क) श्रावण मास (ख) चैत्र मास (ग) आषाढ मास (घ) मार्ग शीर्ष मास
(347) चरक संहिता में ‘देह प्रकृति’ का वर्णन किस अध्याय में हैं।

(क) न वेगान्धारणीयाध्याय (ख) रोगभिषग्जितीय विमानाध्याय (ग) महती गर्भावक्रान्ति (घ) उपरोक्त कोई नहीं
(348) चरक संहिता में ‘दोष प्रकृति’ का वर्णन किस अध्याय में हैं।

(क) न वेगान्धारणीयाध्याय (ख) रोगभिषग्जितीय विमानाध्याय (ग) महती गर्भावक्रान्ति (घ) उपरोक्त कोई नहीं
(349) चरक संहिता में ‘सत्व प्रकृति (मानस प्रकृति)’ का वर्णन किस स्थान में हैं।

(क) सूत्र स्थान (ख) विमान स्थान (ग) शारीर स्थान (घ) इन्द्रिय स्थान
(350) दधि किसके साथ खाना चाहिए।

(क) घृत (ख) शर्करा (ग) मधु (घ) उपरोक्त सभी
(351) मन को ‘अतीन्द्रिय’ की संज्ञा किस आचार्य ने दीहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) तर्क संग्रह
(352) चेष्टाप्रत्ययभूतं इन्द्रियाणाम्। – किसका कर्म है।

(क) वायु का (ख) मन का (ग) आत्मा का (घ) मस्तिष्क का
(353) ‘चक्षु’है।

(क) इन्द्रिय (ख) इन्द्रियार्थ (ग) इन्द्रियाधिष्ठान (घ) इन्द्रिय द्रव्य
(354) ‘अक्षि’है।

(क) इन्द्रिय (ख) इन्द्रियार्थ (ग) इन्द्रियाधिष्ठान (घ) इन्द्रिय द्रव्य
(355) क्षणिका और निश्चयात्मिका – किसके भेद है।

(क) पंचेन्द्रिय बुद्धि (ख) पंचेन्द्रियार्थ (ग) पंचेन्द्रिय द्रव्य (घ) पंचेन्द्रिय
(356) ‘इन्द्रिय पंचपंचक’ का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) उपरोक्तसभी
(357) चरक के मत से ‘अध्यात्म द्रव्यगुणसंग्रह’ है।

(क) मन, मर्नोऽर्थ,बुद्धिआत्मा (ख) मन, मर्नोऽर्थ, बुद्धि (ग) मन, मर्नोऽर्थ, (घ)मन
(358) मन का अर्थ है।

(क) चिन्त्य (ख) विचार्य (ग) ऊह्य (घ) उपरोक्त सभी
(359) मन का अर्थ है।

(क) चिन्त्य (ख) विचार्य (ग) ऊह्य (घ) संकल्प
(360) चरक संहिता के किस अघ्याय में ‘सदवृत्त’का वर्णन मिलता है।

(क) मात्राशितीय (ख) तस्याशितीय (ग) इन्द्रियोपक्रमणीय (घ) न वेगान्धारणीय
(361) चरकानुसार मनुष्य को 1 पक्ष में कितने बार केश, श्मश्रु, लोम व नखकाटना चाहिए।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 4
(362) चरकानुसार किस दिशा में मुख करके भोजन करना चाहिए।

(क) पूर्व (ख) उत्तर (ग) पश्चिम (घ) दक्षिण
(363) इन्द्रियों को अंहकारिककिसने माना है।

(क) वैशेषिक (ख) न्याय (ग) सांख्य (घ) चरक
(364) चरक के मत से ‘अर्थद्वय’ का अर्थ है

(क) धर्म, अर्थ (ख) आरोग्य एवं इन्द्रियविजय (ग)काम, मोक्ष (घ) कोई नहीं
(365) ‘विकारोधातुवैषम्यं साम्यं प्रकृतिरूच्यते’ – किस आचार्य का कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश
(366) ‘रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता’ – किस आचार्य का कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश
(367) ‘निर्देशकारित्वम्’ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) औषध (ग) परिचारक (घ) आतुर
(368) ‘श्रृते पर्यवदातत्वं’ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) औषध (ग) परिचारक (घ) आतुर
(369) ‘दाक्ष्य्’ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) परिचारक (ग) आतुर (घ) वैद्य,परिचारक दोनों
(370) ‘उपचारज्ञता’ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) औषध (ग) परिचारक (घ) आतुर
(371) चरकानुसार चिकित्सा के चतुष्पाद में वैद्य के प्रधान होने का कारण है।

(क) दाक्ष्य, शौच (ख) मेधावी, युक्तिज (ग) हेतुज्ञ, युक्तिज (घ) विज्ञाता, शासिता
(372) प्राणाभिसर वैद्य के गुण है ?

(क) 4 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 12
(373) राजार्ह वैद्य के ज्ञान है ?

(क) 4 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 12
(374) चरकानुसार वैद्य के गुण है ?

(क) 4 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 12
(375) राजार्ह वैद्य के ज्ञान है ?

(क) तस्मात् शास्त्रऽर्थ विज्ञाने प्रवृतौ कर्मदर्शने। (ख) योगमासां तु यो विद्यात् देशकालोपपादितम्।
(ग) विद्या वितर्की विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया। (घ) हेतो लिंगे प्रशमने रोगाणाम् अपुनर्भवे।

(376) वैद्य की 4 वृत्तियों मे शामिल नहींहै।

(क) मैत्री (ख) कारूण्य (ग) मुदिता (घ) उपेक्षा
(377) प्रकृति स्थेषु भूतेषु वैद्यवृत्तिः चतुर्विधा। – यहॉ पर प्रकृति स्थेषु का क्या अर्थ है।

(क) स्वास्थ्य (ख) मृत्यु (ग)चिकित्सा (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(378) निम्नलिखित में कौनसा वर्ग गुण या दोष उत्पन्न करने के लिए पात्र की अपेक्षा करता हैं।

(क) शस्त्र, शास्त्र, वैद्य (ख) शस्त्र, शास्त्र, सलिल (ग) शस्त्र, शास्त्र, द्रव्य (घ) शस्त्र, शास्त्र, रोगी
(379) चरकानुसार ‘साध्य’ के भेद है ?

(क) द्विविध (ख) त्रिविध (ग) चतुर्विध (घ) अ, ब दोनो
(380) न च तुल्य गुणों दूष्यो न दोषः प्रकृति भवेत्- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) अनुपक्रम रोग
(381) कालप्रकृति दूष्याणां सामान्येऽन्यतमस्य च- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग
(382) मर्मसन्धिसमाश्रितम- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग
(383) नातिपूर्ण चतुष्पदम् – किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग
(384) गम्भीरं बहु धातुस्थं- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग
(385) क्रियापथम् अतिक्रान्तं- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ)प्रत्याख्येय रोग
(386)रोगं दीर्घकालम् अवस्थितम्- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग
(387) विद्यात् द्विदोषजम् – किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग
(388) …..द्विदोषजम्।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग
(389) ज्वरे तुल्यतुदोषत्वं प्रमेहे तुल्यदूष्यता। रक्तगुल्मे पुराणत्वं …..स्य लक्षणं।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) अनुनक्रम
(390) ज्वरे तुल्यतुदोषत्वं प्रमेहे तुल्यदोषता। रक्तगुल्मे पुराणत्वं सुखसाध्यस्य लक्षणम्।- किसका कथन है ?

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश
(390) रिक्तस्थानकी पूर्ति कीजिए – प्रमेहे …..सुखसाध्यस्य लक्षणम्।

(क) तुल्यतुदोषत्वं (ख) तुल्यदोषता (ग) तुल्यऋतुः (घ) पुराणत्वम्
(391) चरकानुसार ‘तिस्त्र एषणा’ है।

(क) धर्म, अर्थ, मोक्ष (ख) धर्म, काम, मोक्ष (ग) प्राण, धन, परलोक (घ) प्राण, धन, धर्म
(392) चरकानुसार ‘प्रथम एषणा’ है।

(क) प्राणैषणा (ख) धनैषणा (ग)परलोकैषणा (घ) धर्मेषणा
(393) प्रत्यक्ष प्रमाण में बाधक कारण है।

(क) 4 (ख) 8 (ग) 6 (घ) 10
(394) प्रमाण के लिए “परीक्षा”शब्द किसने प्रयोग किया है।

(क) वैशेषिक (ख) सुश्रुत (ग) जैन (घ) चरक
(395) चरकानुसार ‘अनुमान’ के भेद है ?

(क) द्विविध (ख) त्रिविध (ग) चतुर्विध (घ) पंचविध
(396) “षड्धातु पंचमहाभूत तथा आत्मा के संयोग से गर्भ की उत्पत्ति होती है”- ये किस प्रमाण का उदाहरण हैं।

(क) प्रत्यक्ष (ख) अनुमान (ग) आप्तोपदेश (घ) युक्ति
(397) बुद्धि पश्यति या भावान् बहुकारणयोगजान।”- किसके लिए कहा गया है।

(क) प्रत्यक्ष प्रमाण हेतु (ख) अनुमान हेतु (ग) युक्ति हेतु (घ) उपमान हेतु
(398) त्रिवर्ग में शामिल नहीं है।

(क) धर्म (ख) अर्थ (ग) काम (घ) मोक्ष
(399) चरकानुसार निम्न में कौन सा प्रमाण पुनर्जन्म सिद्ध करता हैं –

(क) प्रत्यक्ष (ख) अनुमान (ग) आप्तोपदेश (घ) उपरोक्त सभी
(400) आचार्य चरक ने प्रत्यक्ष प्रमाणं से पुनर्जन्म सिद्धि में कितने उदाहरण दिये हैं।

(क) 11 (ख) 12 (ग) 13 (घ) 8

उत्तरमाला

301.ग 321.क 341.ग 361.ग 381.ख
302.ग 322.ख 342.क 362.ख 382.ग
303.क 323.घ 343.घ 363.ग 383.ख
304.क 324.घ 344.क 364.ख 384.ग
305.ख 325.क 345.क 365.क 385.घ
306.ग 326.क 346.घ 366.ग 386.ग
307.क 327.क 347.क 367.घ 387.ग
308.ख 328.क 348.ख 368.क 388.ख
309.ग 329.ख 349.ग 369.घ 389.क
310.घ 330.ख 350.घ 370.ग 390.ग
311.ख 331.क 351.क 371.घ 391.ग
312.ख 332.क 352.ख 372.क 392.क
313.ग 333.ग 353.क 373.क 393.ख
314.क 334.ख 354.ग 374.ख 394.घ
315.क 335.क 355.क 375.घ 395.ख
316.घ 336.ख 356.क 376.ग 396.घ
317.घ 337.क 357.क 377.ख 397.ग
318.ख 338.ग 358.घ 378.ख 398.घ
319.क 339.घ 359.क 379.क 399.घ
320.ग 340.घ 360.ग 380.क 400.ग

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