Ayurveda General Knowledge Questionnaire-3
चरकसंहिता: आयुर्वेद सामान्य ज्ञान प्रश्नावली-3
(201) ‘आम्रास्थि’का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।
(क) पुरीषसंग्रहणीय (ख) हृद्य (ग) पुरीषविरंजनीय (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(202) कमल के भेदों का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।
(क) मूत्रसंग्रहणीय (ख) मूत्रविरेचनीय (ग) मूत्रविरंजनीय (घ) उपर्युक्त कोई नही
(203) मूत्रविरेचनीय महाकषाय में किसका उल्लेख नहीं है।
(क) दर्भ का (ख) कुश का (ग) काशका (घ) शर का
(204) ‘भृष्टमृत्तिका’का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।
(क) मूत्रसंग्रहणीय (ख) मूत्रविरेचनीय (ग) पुरीषविरंजनीय (घ) पुरीषसंग्रहणीय
(205) ‘स्तन्यशोधन महाकषाय’ में सम्मिलित नहीं है।
(क) कटुकी (ख) नागरमोथा (ग) हरिद्रा (घ) मूर्वा
(206) ‘प्रजास्थापन महाकषाय’ में सम्मिलित नहीं है।
(क) अमोघा (ख) अव्यथा (ग) अरिष्टा (घ) अश्वगंधा
(207) निम्नलिखित में से किस चरकोक्त दशेमानि में ‘मोचरस’ शामिल नहीं हैं।
(क) पुरीष संग्रहणीय (ख) वेदनास्थापन (ग) शोणितस्थापन (घ) पुरीषविरंजनीय
(208) निम्नलिखित में से किस चरकोक्त दशेमानि में ‘शर्करा’ शामिल हैं।
(क) दाहप्रशमन (ख) वेदनास्थापन (ग) शोणितस्थापन (घ) ज्वरघ्न
(209) दशमूल के द्रव्यों का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।
(क) वातहर (ख) बल्य (ग) शोथहर (घ) उर्पयुक्त कोई नहीं
(210) अशोकका वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।
(क) वेदनास्थापन (ख) शोणितस्थापन (ग) वयःस्थापन (घ) शूलप्रशमन
(211) तृष्णानिग्रहण एंव वयः स्थापन महाकषायों में समाविष्टहै।
(क) अभया (ख) अमृता (ग) नागर (घ) पुनर्नवा
(212) चरकोक्त कुष्ठघ्न व कण्डूघ्न दोनों महाकषाय में समाविष्टहै।
(क) हरिद्रा (ख) खदिर (ग) आरग्वध (घ) विडंग
(213) चरकोक्त कुष्ठघ्न व कृमिघ्न दोनों महाकषाय में समाविष्टहै।
(क) हरिद्रा (ख) खदिर (ग) आरग्वध (घ) विडंग
(214) बेर के भेदों का वर्णन किस महाकषाय में है।
(क) वमनोपग (ख) विरेचनोपग (ग) स्नेहोपग (घ) स्वेदनोपग
(215) चरक संहिता में वर्णित “पुरीष संग्रहणीय” महाकषाय के द्रव्य है।
(क) आम संग्राहक (ग्राही) (ख) पक्व संग्राहक (स्तम्भन) (ग) दोनों (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(216) चरक संहिता में वर्णित कौनसे महाकषाय को योगीनाथसेन ने “अरोचकहर” कहा हैं।
(क) दीपनीय (ख) पाचनीय (ग) कण्ठय (घ) तृप्तिघ्न
(217) कालमेह, नीलमेह एवं हारिद्रमेह कीचिकित्सा मेंचरकोक्त किस दशेमानि वर्ग के द्रव्यों करना चाहिए।
(क) मूत्रसंग्रहणीय (ख) मूत्रविरेचनीय (ग) मूत्रविरंजनीय (घ) उपयुर्क्त कोई नहीं
(218) ‘विदारीगंधा’ किसका पर्याय हैं ?
(क) क्षीरविदारी (ख) विदारी (ग) शालपर्णी (घ) पृश्निपर्णी
(219) रसा लवणवर्ज्याश्च कषाया इति संज्ञिताः’ – किस आचार्य का कथन है।
(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) शारंर्ग्धर
(220) ‘भिषग्वर’का वर्णन चरक संहिता के किस अध्याय में है।
(क) दीर्घन्जीवितीय (ख) खुड्डाक चतुष्पाद (ग) षड्विरचेनशताश्रितीय (घ) महारोगाध्याय
(221) चरक के मत से लघु द्रव्यों में किसकी की बहुलता रहती है।
(क) वाय्वग्निगुण बहुल (ख) आकाशवाय्वग्निगुण बहुल (ग) पृथ्वीसोमगुण बहुल (घ) उपरोक्त सभी
(222) चरक के मत से गुरू द्रव्यों में किसकी की बहुलता रहती है।
(क) वाय्वग्निगुण बहुल (ख) आकाशवाय्वग्निगुण बहुल (ग) पृथ्वीसोमगुण बहुल (घ) कोई नहीं
(223) ‘बलवर्णसुखायुषा’ किससे प्राप्त होता है।
(क) शुद्ध रूधिर (ख) ओज (ग) मात्रापूर्वक आहार (घ) अ, स दोनों
(224) निरन्तर वर्जनीय आहार द्रव्य है।
(क) मत्स्य (ख) दही (ग) माष (घ) उपरोक्त सभी
(225) ‘वल्लूर’ शब्द का चक्रपाणिकृत अर्थ हैं ?
(क) शुष्क फलम् (ख) शुष्क मांसम् (ग) शुष्क शाकम् (घ) शुष्क कन्दम्
(226) न शीलयेत्आहार द्रव्य है।
(क) सैंधव लवण (ख) यव (ग) यवक (घ) जांगल मांस
(227) निरन्तर अभ्यसेत्द्रव्य नहीं है।
(क) दूध (ख) दही (ग) घृत (घ) मधु
(228) ‘नित्य तर्पणीय है।
(क) शालि (ख) मुद्ग (ग) सर्पि (घ) उपरोक्त सभी
(229) चरक संहिता के किस अघ्याय में ‘स्वस्थवृत्त’का वर्णन किया गया है।
(क) मात्राशितीय (ख) तस्याशितीय (ग) इन्द्रियोपक्रमणीय (घ) न वेगान्धारणीय
(230) चरक संहिता के किस अघ्याय में ‘सद्वृत्त’ का वर्णन किया गया है।
(क) चू.सू.अ.5 (ख) चू.सू.अ.6 (ग) चू.सू.अ.7 (घ) चू.सू.अ.8
(231) चरकानुसार नित्य प्रयोज्य अंजन कौनसा है ?
(क) सौवीराजंन (ख) स्रोत्रोजंन (ग) रसाजंन (घ) पुष्पाजंन
(232) नेत्र से स्राव निकालने के लिए कौनसे अंजन का प्रयोग करना चाहिए।
(क) सौवीराजंन (ख) स्रोत्रोजंन (ग) रसाजंन (घ) पुष्पाजंन
(233) चरक ने नेत्र विस्राणार्थ रसांजन का प्रयोग बतलाया है।
(क) 5 वें या 8 वें दिन (ख) 3वें दिन (ग) 7वें दिन (घ) 5वेंया 8वें रात्रि में
(233) चरक ने नेत्र विस्राणार्थ रसांजन का प्रयोग कब बतलाया है।
(क) पन्चरात्रे अष्टरात्रे (ख) त्रिरात्रे (ग) सप्तरात्रे (घ) एकान्तरेरात्रे
(234) चक्षुस्तेजोमयं तस्य विशेषाच्छ्लेष्मतो भयम्। ततः ….. कर्म हितं दृष्टेः प्रसादनम्।। (च.सू.5/16)
(क) वातहरं (ख) पित्तहरं (ग) श्लेष्महरं (घ) त्रिदोषहरं
(235) चरक ने प्रायोगिक धूमवर्ती की लम्बाई बतलायी है।
(क) 8 अंगुल (ख) 6अंगुल (ग) 10 अंगुल (घ) 12 अंगुल
(236) आचार्य चरक ने प्रायोगिक धूम्रपान के कितने काल बताए हैं।
(क) 8 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 5
(237) चरकमतेन स्नैहिक धूम्रपान दिन में कितनी बार करना चाहिए हैं ?
(क) 8 (ख) 2 (ग) 1 (घ) 3-4
(238) चरकमतेन धू्रम्रनेत्र का अग्र छिद्र किसके सम होना चाहिए।
(क) कोलास्थ्यग्रप्रमाणितम् (ख) कोलमात्रछिद्रे (ग) हरेणुका प्रमाणितम् (घ) सर्पषमात्रछिद्रे
(239) “हृत्कण्ठेन्द्रियसंशुद्धिः लघुत्वं शिरसः शमः”- किसका लक्षण है।
(क) सम्यक् वमन (ख) सम्यक् नस्य (ग) सम्यक् धूम्रपान (घ) सम्यक्निरूह
(240) 12 वर्ष से पूर्व और 80 वर्ष के बाद धूम्रपान निषेध किसने बतलाया है।
(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) शारंर्ग्धर
(241) चरक के मत से नस्य का प्रयोग किस ऋतु में करना चाहिए।
(क) प्रावृट, शरद और बंसत (ख) शिशिर, बसंत, ग्रीष्म (ग) बर्षा, शरद, हेमन्त (घ) उपरोक्त सभी
(242) नस्य औषधि का प्रभाव कौनसी मर्म पर होता हैं।
(क) शंख (ख) श्रृंगाटक (ग) मूर्धा (घ) फण
(243) नासा हि शिरसो द्वारं तेन तद्धयाप्य हन्ति तान्। – किस आचार्य का कथन हैं।
(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शारर्ग्धर
(244) चरकमतेन ‘अणुतैल’ की मात्रा कितनी होती है।
(क) 1 पल (ख) 1 कोल (ग) 1 कर्ष (घ) अर्द्ध पल
(245) चरकानुसार ‘अणुतैल’ की निर्माण प्रक्रिया मे तैल का कितनी बार पाक किया जाता हैं ?
(क) एक बार (ख) दश बार (ग) सौ बार (घ) हजार बार
(246) शारंर्ग्धरके अनुसार कितने वर्ष से पूर्व नस्य का निषेध है।
(क) 10बर्ष (ख) 12 बर्ष (ग) 7 बर्ष (घ) 8 बर्ष
(247) वाग्भट्ट ने दातुन की लम्बाई बतलायी है।
(क) 8 अंगुल (ख) 6अंगुल (ग) 10 अंगुल (घ) 12 अंगुल
(248) निहन्ति गन्धं वैरस्यं जिहृवादन्तास्यजं मलम्।- किसका गुणधर्म है।
(क) दन्तपवन (ख) जिहृवा निर्लेखन (ग) मुख संगन्धि द्रव्य (घ) गण्डूषकवलधारण
(249) ‘निम्ब’ वृक्ष की दन्तपवन (दातौन) का प्रयोग करने का उल्लेख किस आचार्य ने कियाहैं।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) उपरोक्त सभी
(250) ‘दन्तशोधन चूर्ण’ का वर्णन किस आचार्य ने कियाहैं।
(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारर्ग्धर
(251) वृद्ध वाग्भट्टानुसार दंत धावन के लिए कौन से द्रव्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(क) पीलु, पीपल, पारिभद्र (ख) श्लेष्मातक, शिग्रु, शमी, शाल्मली, शण
(ग) तिल्वक, तिन्दुक, बिल्ब, विभीतक, र्निगुण्डी (घ) उर्पयुक्त सभी
(252) अष्टांग संग्रह के अनुसार निषिद्ध दन्तवन है।
(क) धव (ख) अर्क (ग) वट (घ) अपामार्ग
(253) ‘दन्तदाढर्यकर’ है।
(क) बकुल (ख) तेजोवती (ग) पीलू (घ) उपरोक्त सभी
(254) सुश्रुतने जिहृवार्निलेखन की लम्बाई बतलायी है।
(क) 6अंगुल (ख) 8अंगुल (ग) 10 अंगुल (घ) 12 अंगुल
(255) चक्रपाणि के अनुसार ‘कटुक’ किसका पर्याय हैं ?
(क) कटुकी (ख) मरिच (ग) कटुरोहिणी (घ) लताकस्तूरी
(256) मुखशोष में संग्रहकार के अनुसार हितकर है।
(क) ताम्बूल (ख) जातीपत्री (ग) लताकस्तूरी (घ) कर्पूर
(257) दंतदार्ढयकर, दन्तहर्षनाशक, रूच्यकर एंव मुखवैरस्यनाशकहैं।
(क) दन्तधावन (ख) जिहृवा निर्लेखन (ग) मुखसंगन्धि द्रव्य (घ) गण्डूष कवल धारण
(258) मुख संचार्यते या तु मात्रा स …..स्मृतः।
(क) कवलः (ख) गण्डूषः (ग) कवलगण्डूषः (घ) मुखवैशद्यकरः
(259) शारंर्ग्धर के अनुसार जन्म से कितने वर्ष बाद गण्डूष कवल धारणकरना चाहिए।
(क) 5 बर्ष (ख) 6 बर्ष (ग) 7 बर्ष (घ) 8 बर्ष
(260) चरक के अनुसार ‘दृष्टिः प्रसादं’ है।
(क) पादाभ्यंग (ख) पादत्रधारण (ग) पादप्रक्षालन (घ) छत्रधारणम्
(261) ‘चक्षुष्यम् स्पर्शनहितम्’ कहा गया है।
(क) अंजन को (ख) गण्डूष धारण (ग) पादाभ्यंग (घ) पादत्रधारण
(262) ‘वृष्यं सौगन्धमायुष्यं काम्यं पुष्टिबलप्रदम्’ – किसके लिए कहा गया है।
(क) क्षौरकर्म (ख) स्वच्छ वस्त्र धारण (ग) गन्धमाल्य धारण (घ) स्नान
(263) श्रीमत्पारिषदं शस्तं निर्मलाम्बरधारणम्।- किसके लिएकहा गया है।
(क) क्षौरकर्म (ख) स्वच्छ वस्त्र धारण (ग) गन्धमाल्य धारण (घ) स्नान
(264) बल, वर्ण वर्धन करता है।
(क) रक्त (ख) ओज (ग) सत्व (घ) आहार
(265) चरक के मत से ‘आदान काल’में कौनसी ऋतुए शामिल होती है।
(क) प्रावृट, शरद और बंसत (ख) शिशिर, बसंत, ग्रीष्म (ग) बर्षा, शरद, हेमन्त (घ) हेमन्त, शरद, बसंत
(266) ‘विसर्ग काल’ कहलाताहै।
(क) आग्नेय काल (ख) उत्तरायण काल (ग) दक्षिणायन काल (घ) उपरोक्त कोई नहीं
(267) आदान काल में कौनसे गुण की वृद्धि होती है।
(क) उष्ण (ख) शीत (ग) रूक्ष (घ) स्निग्ध
(268) विसर्ग काल में कौनसे गुण की वृद्धि होती है।
(क) उष्ण (ख) शीत (ग) रूक्ष (घ) स्निग्ध
(269) ‘बसंत ऋतु’ में कौन से रस की उत्पत्ति होती हैं ?
(क) तिक्त (ख) कषाय (ग) कटु (घ) उपरोक्त सभी
(270) ‘हेमन्त ऋतु’ में कौन से रस की उत्पत्ति होती हैं ?
(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) उपरोक्त सभी
(271) “मध्ये मध्यबलं त्वन्ते श्रेष्ठमग्रे विर्निर्दिशेत्” यहॉ चक्रपाणि अनुसार ‘अग्रे’ पद का उचित अर्थ है ? (च.सू.6/8)
(क) शिशिरे (ख) प्रधाने (ग) चैत्रे (घ) वर्षायाम्
(272) आचार्य चरक ने ऋतुचर्या का वर्णन कौनसी ऋतु से प्रारम्भ किया है।
(क) शिशिर (ख) प्रावृट् (ग) हेमन्त (घ) शरद
(273) किस आचार्य ने ‘हंसोदक’का वर्णन नहीं किया हैं।
(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश
(274) ‘यमंदष्ट्रा काल’का वर्णन किस आचार्य ने किया हैं।
(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(275) जेन्ताक स्वेदका प्रयोग किस ऋतु मे करना चाहिए।
(क) शिशिर (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद
(276)’वर्जयेदन्नपानानि वातलानि लघूनि च’ – सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) शिशिर (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद
(277)’वातलानि लघूनि च वर्जयेदन्नपानानि’ – सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(278)’उष्ण गर्भगृह में निवास’ – किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(279)’निवात व उष्ण गृह में निवास’ – किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(280)’प्रवात (तीव्र वायु)’ का निषेध किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(281)’प्राग्वात (पूर्वीवायु)’ का निषेध किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(282)’औदक, आनूप, विलेशय एवं प्रसह मांस जाति के पशु-पक्षियों का मांस का सेवन किस ऋतु में करना चाहिए।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) बर्षा ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(283)चरक के मत से ‘शारभं, शाशक, ऐणमांस, लावक और कपिजंलम् के मांस का सेवन किस ऋतु में करना चाहिए।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) बर्षा ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(284)चरकानुसार ‘लाव, कपिन्जल, ऐण, उरभ्र, शरभ और शशक मांस के मांस का सेवन किस ऋतुमें करना चाहिए।
(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) बर्षा ऋतु (घ) बंसत ऋतु
(285) ‘जांगलैः मांसैर्भोज्या’ का निर्देश किस ऋतु में है।
(क) हेमंत ऋतु (ख) बंसत ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) ग्रीष्म ऋतु
(286) ‘जांगलान्मृगपक्षिणः मांस’ कानिर्देश किस ऋतु में है।
(क) हेमंत ऋतु (ख) बंसत ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) ग्रीष्म ऋतु
(287) चरकानुसार शिशिर ऋतु में किस ऋतुतुल्य चर्या करनी चाहिए है –
(क) शरद (ख) हेमन्त (ग) ग्रीष्म (घ) बंसत
(288) शिशिर ऋतु मेंकौनसे रस वर्ज्य हैं ?
(क) कटु,तिक्त,कषाय (ख) मधुर, तिक्त,कषाय (ग) मधुर, अम्ल, लवण (घ) कटु, अम्ल, लवण
(289)’गुर्वम्लस्निग्धमधुरं दिवास्वप्न च वर्जयेत्’ – सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) बर्षा (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद
(290)’व्यायाममातपं चैव व्ययावं चात्र वर्जयेत्’ – सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) बर्षा (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद
(291) चरक के मत से ‘कवलग्रह तथा अंजन’का प्रयोग किस ऋतु मे करना चाहिए।
(क) बर्षा (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद
(292) मद्यमल्पं न वा पेयमथवा सुबहु उदकम्।- किस ऋतु के लिये कहा गया है।
(क) शरद (ख) हेमन्त (ग) ग्रीष्म (घ) बंसत
(293) सर्वदोष प्रकोपक ऋतु है।
(क) शिशिर (ख) बंसत (ग) वर्षा (घ) शरद
(294) ‘प्रघर्षोद्वर्तन स्नानगन्धमाल्यपरो भवेत’ का निर्देश किस ऋतु में है।
(क) हेमंत ऋतु (ख) बंसत ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) ग्रीष्म ऋतु
(295) आदान दुर्बले देहे ….. भवति दुर्बलः। उपयुक्त विकल्प में रिक्त स्थान की पूर्ति करें। (च.सू.6/33)
(क)कफो (ख) वायु (ग) पक्ता (घ) पुरूषो
(296) वर्षा ऋतु में मधु का प्रयोग किस तरह करना चाहिए।
(क) पान में (ख) भोजन में (ग) संस्कार में (घ) उपरोक्त सभी
(297) चरकानुसार ‘दिवास्वप्न’ किस-किस ऋतु मे वर्जनीयहै।
(क) बसंत, बर्षा, शरद (ख) प्रावृट, शरद और बंसत (ग) बर्षा, शरद, हेमन्त (घ) हेमन्त, शरद, बसंत
(298) हंसोदक जल का किस ऋतु में तैयार होता हैं ?
(क) हेमंत ऋतु (ख) बर्षाऋतु (ग) शरदऋतु (घ) उपर्युक्त सभी में
(299)’उपशेते यदौचित्यात् ….. तदुच्यते।’ – रिक्त स्थान की पूर्ति उपयुक्त विकल्प से करें। (च. सू.6/49)
(क) ओकः सात्म्यं (ख) सदा पथ्यम् (ग)नैवसात्म्यम् (घ) असात्म्यम्
(300) ओकः सात्म्यको ‘अभ्यास सात्म्य’ किस आचार्य ने कहा है।
(क) चक्रपाणि (ख) योगीन्द्रनाथ सेन (ग) गंगाधर रॉय (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तरमाला
201.क 221.क 241.क 261.घ 281.क
202.ग 222.ग 242.ख 262.ग 282.ख
203.घ 223.घ 243.ग 263.ख 283.घ
204.ग 224.घ 244.घ 264.घ 284.क
205.ग 225.ख 245.ख 265.ख 285.ग
206.घ 226.ग 246.ग 266.ग 286.घ
207.घ 227.ख 247.घ 267.ग 287.ख
208.ख 228.घ 248.क 268.घ 288.क
209.ग 229.क 249.ख 269.ख 289.ख
210.क 230.घ 250.ख 270.क 290.क
211.ख 231.क 251.घ 271.क 291.ख
212.ग 232.ग 252.क 272.ग 292.ग
213.घ 233.घ 253.क 273.क 293.ग
214.ख 234.ग 254.ग 274.घ 294.ग
215.ख 235.क 255.घ 275.ग 295.ग
216.घ 236.क 256.ग 276.ग 296.घ
217.ग 237.ग 257.घ 277.ग 297.क
218.ग 238.क 258.क 278.ख 298.ग
219.ख 239.ग 259.क 279.ग 299.क
220.ग 240.घ 260.क 280.ख 300.ग