Ayurveda General Knowledge Questionnaire-12

0 0
Read Time:18 Minute, 57 Second

Ayurveda General Knowledge Questionnaire-12
चरकसंहिता सूत्रस्थान: आयुर्वेद सामान्य ज्ञान प्रश्नावली-12

(101) ‘औद्भिद’ किसका प्रकार है।

(क) द्रव्य (ख) लवण (ग) जल (घ) उपर्युक्त सभी
(102) ‘उदुग्बर’ है।

(क) वनस्पति (ख) वानस्पत्य (ग) वीरूध (घ) औषधि
(103)फल पकने पर जिसका अन्त हो जाए वह है ?

(क) वनस्पति (ख) वानस्पत्य (ग) वीरूध (घ) औषधि
(104) जिनमें सीधे ही फल दृष्टिगोचर हो – वह है ?

(क) वनस्पति (ख) वानस्पत्य (ग) वीरूध (घ) औषधि
(105) सुश्रुतानुसार ‘जिसमें पुष्प और फलदोनों आते है’ – वह स्थावर कहलाता है।

(क) वनस्पत्य (ख) वानस्पत्य (ग) वृक्षा (घ) उपर्युक्त सभी
(106) 16 मूलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है।

(क)बिम्बी (ख) हस्तिपर्णी (ग) गवाक्षी (घ) प्रत्यकश्रेणी
(107) चरकोक्त 16 मूलिनी द्रव्यों में ‘छर्दन’ किसका कार्य है।

(क)शणपुष्पी (ख) बिम्बी (ग) हैमवती (घ) उपर्युक्त सभी
(108) चरकोक्त 16 मूलिनी द्रव्यों में ‘विरेचन’ हेतु कितने द्रव्य है।

(क) दश (ख) एकादश (ग) षोडश (घ) चतुर्विध
(109) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है।

(क) क्लीतक (ख) आरग्वध (ग) प्रत्यक्पुष्पा (घ) सदापुष्पी
(110) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है ?

(क) आमलकी (ख) हरीतकी (ग) कम्पिल्लक (घ) अन्तकोटरपुष्पी
(111) चरकानुसार क्लीतक (मुलेठी) के कितने भेद होते है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 5 (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(112) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में नस्य हेतु कितने द्रव्य है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 8
(113) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में ‘विरेचन’ हेतु कितने द्रव्य है।

(क) दश (ख) एकादश (ग) अष्ट (घ) एकोनविशंति
(114) स्नेहना जीवना बल्या वर्णापचयवर्धनाः। – किसका गुण है।

(क) मांस (ख) मद्य (ग) पयः (घ) महास्नेह
(115) महास्नेह की संख्याहै।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 8
(116) चरकानुसार ‘प्रथम लवण’ है।

(क) सैंन्धव (ख) सौवर्चल (ग) सामुद्र (घ) विड
(117) रस तरंगिणी के अनुसार ‘प्रथम लवण’ है।

(क) सैंन्धव (ख) सौवर्चल (ग) सामुद्र (घ) विड
(118) चरकानुसार ‘पंच लवण’ में शामिल नहीं है ?

(क) सौवर्चल (ख) सामुद्र (ग) औद्भिद (घ) रोमक
(119) रस तरंगिणी के अनुसार‘पंच लवण’ में शामिल नहीं है ?

(क) सौवर्चल (ख) सामुद्र (ग) औद्भिद (घ) रोमक
(120) अष्टमूत्र के संदर्भ में ‘लाघवं जातिसामान्ये स्त्रीणां, पुंसां च गौरवम्’ – किस आचार्य का कथन है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) हारीत (घ) भाव प्रकाश
(121) चरकानुसार मूत्र में ‘प्रधान रस’होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु (ग) लवण (घ) कषाय
(122) चरकानुसार मूत्र का ‘अनुरस’होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु (ग) लवण (घ) कषाय
(123) पाण्डुरोग उपसृष्टानामुत्तमं …..चोत्यते। श्लेष्माणं शमयेत्पीतं मारूतं चानुलोमयेत्।

(क) मूत्र (ख) गोमूत्र (ग) शर्म (घ) पित्तविरेचन
(124) चरकानुसार मूत्र का गुण है।

(क) वातानुलोमन (ख) पित्तविरेचक (ग) कफशामक (घ) उपर्युक्त सभी
(125) वाग्भट्टानुसार मूत्र होता है।

(क) पित्तविरेचक (ख) पित्तवर्धक (ग) विषापह (घ) रसायन
(126) ‘मूत्रं मानुषं च विषापहम्।’ – किस आचार्य का कथन है –

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) अष्टांग संग्रह (घ) भाव प्रकाश
(127) हस्ति मूत्र का रस होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु,तिक्त (ग) लवण (घ) क्षार
(128) माहिषमूत्र का रस होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु,तिक्त (ग) लवण (घ) क्षार
(129) किसकामूत्र ‘सर’ गुण वाला होता है।

(क) हस्ति (ख) उष्ट्र (ग) माहिषी (घ) वाजि
(130) किसकामूत्र ‘पथ्य’ होता है।

(क) गोमूत्र (ख) अजामूत्र (ग) उष्ट्रमूत्र (घ) खरमूत्र
(131) कुष्ठ व्रण विषापहम् – मूत्र है।

(क) हस्ति (ख) आवि (ग) माहिषी (घ) वाजि
(132) चरकानुसार ‘अर्श नाशक’ मूत्र है।

(क) हस्ति (ख) उष्ट्र (ग) माहिषी (घ) उपर्युक्त सभी
(133) उन्माद, अपस्मार, ग्रहबाधा नाशकमूत्र है ?

(क) हस्ति (ख) उष्ट्र (ग) खर (घ) वाजि
(134) चरक ने ‘श्रेष्ठं क्षीणक्षतेषु च’किसके लिए कहा है।

(क) महास्नेह (ख)मांस (ग) पयः (घ) नागबला
(135) पाण्डुरोगेऽम्लपित्ते च शोषे गुल्मे तथोदरे। अतिसारे ज्वरे दाहे च श्वयथौ च विशेषतः। – किसके लिए कहा है।

(क) महास्नेह (ख) अष्टमूत्र (ग) पयः (घ) घृत
(136) चरक संहिता में मूलनी, फलिनी, लवण और मूत्र की संख्या क्रमशःहै।

(क) 19, 16, 5, 8 (ख) 16, 19, 5, 8 (ग) 16, 19, 8, 5 (घ) 19, 16, 4, 8
(137) शोधनार्थ वृक्षों की संख्याकी संख्या है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 6
(138) चरकानुसार क्षीरत्रय होता है।

(क) अर्क, स्नुही, वट (ख) अर्क, स्नुही, अश्मन्तक (ग) अर्क, वट, अश्मन्तक (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(139) ‘अर्कक्षीर’का प्रयोग किसमें निर्दिष्टहै।

(क) वमन में (ख) विरेचन में (ग) वमन, विरेचन दोनो में (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(140) चरकानुसार अश्मन्तक का प्रयोग किसमें निर्दिष्टहै।

(क) वमन में (ख) विरेचन में (ग) वमन, विरेचन दोनो में (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(141)चरक ने तिल्वक का प्रयोग बतलाया है।

(क) वमन में (ख) विरेचन में (ग) वमन, विरेचन दोनो में (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(142) चरकानुसार ‘परिसर्प, शोथ, अर्श, दद्रु, विद्रधि, गण्ड, कुष्ठ और अलजी’में शोधन के लिए प्रयुक्त होता है।

(क) पूतीक (ख) कृष्णगंधा (ग) तिल्वक (घ) उपर्युक्त सभी
(143) ‘योगविन्नारूपज्ञस्तासां ….. उच्यते।

(क) श्रेष्ठतम भिषक (ख) तत्वविद (ग) छदम्चर वैद्य (घ) भिषक
(144) पुरूषं पुरूषं वीक्ष्य स ज्ञेयो भिषगुत्तमः। – किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) हारीत
(145) यथा विषं यथा शस्त्रं यथाग्निरशर्नियथा। – किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) भाव प्रकाश
(146) चरकानुसार ‘भिषगुत्तम’ है।

(क) तस्मात् शास्त्रऽर्थ विज्ञाने प्रवृतौ कर्मदर्शने। (ख) हेतो लिंगे प्रशमने रोगाणाम् अपुनर्भवे। (ग) विद्या वितर्की विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया। (घ) योगमासां तु यो विद्यात् देशकालोपपादितम्।
(147) ताम्र का प्रथम उल्लेख किसने किया हैं।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) सोढल (घ) नागार्जुन
(148) ‘पुत्रवेदवैनं पालयेत आतुरं भिषक्।’ – किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप
(149) चरक संहिता मे अन्तः परिमार्जन द्रव्यों से सम्बधित अध्याय है।

(क) दीर्घ×जीवतीय (ख) अपामार्गतण्डुलीय (ग) आरग्वधीय (घ) षडविरेचनशताश्रितीय
(150) शिरोविरेचनार्थ ‘अपामार्ग’ का प्रयोज्यांग है ?

(क) तण्डुल (ख) बीज (ग) फल (घ) फल रज चूर्ण
(151) ‘वचा एवंज्योतिष्मति’दानों द्रव्यों को शिरोविरेचनद्रव्यों के गण में कौनसे आचार्य ने शामिल किया है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) अ, ब दोनों
(152) शिरोविरेचन द्रव्यों में कौनसा रस शामिल नहीं होता है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) अ, ब दोनों
(153) चरक ने अपामार्गतण्डुलीय अध्याय में ‘वचा’ को कौनसे वर्ग में शामिल किया है।

(क) शिरोविरेचन (ख) वमन (ग) विरेचन (घ) आस्थापन/अनुवासन
(154) चरक ने अपामार्गतण्डुलीय अध्याय में ‘एरण्ड’को कौनसे वर्ग में शामिल किया है।

(क) शिरोविरेचन (ख) वमन (ग) विरेचन (घ) आस्थापन/अनुवासन
(155) चरक संहिता में सर्वप्रथम ’पंचकर्म’ शब्द कौनसे अध्याय मेंआया है।

(क) दीर्घन्जीवतीय (ख) अपामार्गतण्डुलीय (ग) आरग्वधीय (घ) षडविरेचनशताश्रितीय
(156) चरकानुसार औषध की सम्यक् योजनाकिस पर निर्भर करती है ?

(क) औषध की मात्रा और काल पर (ख) रोगी के बल और कालपर (ग) रोगी के कोष्ठऔर अग्निबल पर (घ) रोगी के वय और कालपर
(157) …..यवाग्वः परिकीर्तिताः।

(क) अष्टादश (ख) षड् (ग) चर्तुविंशति (घ) अष्टाविंशति
(158) चरकोक्त 28 यवागू में कुल कितनी पेया हैं।

(क) 4 (ख) 6 (ग) 32 (घ) 28
(159) किसके क्वाथ से सिद्ध यवागू विषनाशक होतीहैं।

(क) शिरीष (ख) सिन्धुवार (ग) सोमराजी (घ) विडंग
(160) यवानां यमके पिप्पल्यामलकैः श्रृता। – यवागू का कर्महै।

(क) कण्ठरोगनाशक (ख) वातानुलोमक (ग) पक्वाशयशूल रूजापहा (घ)रूक्षणार्थ
(161) यमके मदिरा सिद्धा …..यवागू।

(क) कण्ठरोगनाशक (ख) वातानुलोमक (ग) पक्वाशयशूल रूजापहा (घ) रूक्षणार्थ
(162) दधित्थबिल्वचांगेरीतक्रदाडिमा साधिता।- यवागू है।

(क) दीपनीय, शूलघ्नयवागू (ख) आमातिसारघ्नी पेया (ग) रक्तातिसारनाशक पेया (घ) पाचनी, ग्राहिणी पेया
(163) तक्रसिद्धा यवागूः।

(क) घृतव्यापद नाशक (ख) तैलव्यापद नाशक (ग) मद्यव्यापद नाशक (घ) क्षुधानाशक
(164) तक्रपिण्याक साधिता यवागू।

(क) घृतव्यापद नाशक (ख) तैलव्यापद नाशक (ग) मद्यव्यापद नाशक (घ) क्षुधानाशक
(165) ताम्रचूडरसे सिद्धा …..।

(क) शिश्नपीडाशामकः (ख) शुक्रमार्गरूजापहा (ग) रेतोमार्गरूजापहा (घ) उपर्युक्त सभी
(166) दशमूल क्वाथ से सिद्ध यवागू होतीहैं ?

(क) श्वासनाशक (ख) कासनाशक (ग) हिक्कानाशक (घ) उपर्युक्तसभी
(167) चरकानुसार मुर्गे का पर्याय है।

(क) ताम्रचूड (ख) चरणायुधा (ग) कुक्कुट (घ) उपर्युक्तसभी
(168) उपोदिकादधिभ्यां तु सिद्धा…..यवागू।

(क) विषमज्वरनाशक (ख) मदविनाशिनी (ग) भेदनी (घ) रोचक
(169) चरकानुसार चिकित्सक की अर्हताएॅमें शामिल नहीं है।

(क) हेतुज्ञ (ख) व्यवसायी (ग) युक्तिज्ञ (घ) जितेन्द्रय
(170) चरक संहिता मे बर्हिपरिमार्जन द्रव्यों से सम्बधित अध्याय है।

(क) दीर्घ×जीवतीय (ख) अपामार्गतण्डुलीय (ग) आरग्वधीय (घ) षडविरेचनशताश्रितीय
(171) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में कुष्ठहर कुल कितने ’लेप’ बताए गए है।

(क) 32 (ख) 15 (ग) 6 (घ) 16
(172) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में वातविकारनाशककुल कितने ’लेप’ बताए गए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 4
(173) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में कितने ’प्रघर्ष’ बताए गए है।

(क) 32 (ख) 4 (ग) 1 (घ) शून्य
(174) नतोत्पलं चन्दनकुष्ठयुक्तं शिरोरूजायां सघृतं प्रदेहः।

(क) विषघ्न (ख) शिरोरूजायां (ग) स्वेदहर (घ) कुष्ठहर
(175) शिरीष और सिन्धुवार के लेप होता हैं ?

(क) विषघ्न (ख) शरीरदौर्गन्ध्यहर (ग) स्वेदहर (घ) कुष्ठहर
(176) तेजपत्र, सुगन्धबाला, लोध्र, अभय और चन्दन के लेप का प्रयोग किस संदर्भ में हैं ?

(क) विषघ्न (ख) शरीरदौर्गन्ध्यहर (ग) स्वेदहर (घ) कुष्ठहर
(177) चक्रपाणि के अनुसार ‘अभय’ किस औषध का पर्याय हैं ?

(क) हरीतकी (ख) उशीर (ग) तगर (घ) देवदारू
(178) चरकसंहिता में प्रलेप की मोटाई और उसे लगाने के निर्देशों का वर्णन कौनसे अध्याय में है।

(क) अपामार्गतण्डुलीय (ख) आरग्वधीय (ग)विसर्पचिकित्सा (घ) वातरक्तचिकित्सा
(179) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में कुल कितने सूत्र है।

(क) 30 (ख) 32 (ग) 34 (घ) 36
(180) चरक ने विरेचन द्रव्यों के कितने आश्रय बतलाए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(181) चरक ने शिरो विरेचन द्रव्यों के कितने आश्रय बतलाए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(182) सप्तला-शंखिनी के विरेचन योगों की संख्या हैं।

(क) 45 (ख) 48 (ग) 39 (घ) 60
(183) धामार्गव के वामकयोगों की संख्या हैं।

(क) 45 (ख) 48 (ग) 39 (घ) 60
(184) दन्ती-द्रवन्ती के विरेचन योगों की संख्या हैं।

(क) 45 (ख) 48 (ग) 39 (घ) 60
(185) स्वरसः, कल्कः, श्रृतः, शीतः फाण्टः कषायश्चेति। …..।

(क) पूर्व पूर्व बलाधिका (ख) यथोक्तरं ते लघवः प्रदिष्टा (ग) तेषां यथापूर्व बलाधिक्यम् (घ) कोई नहीं
(186) ‘पंचविध कषाय कल्पनाओं’ के संदर्भ में ‘पंचधैवं कषायाणां पूर्व पूर्व बलाधिका’ किस आचार्य ने कहा है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(187) ‘द्रव्यादापोत्थितात्तोये तत्पुनर्निशि संस्थितात्’- किस कषाय कल्पना के लिये कहा गया है।

(क) क्वाथ (ख) कल्क (ग) शीत (घ) फाण्ट
(188) ‘यः पिण्डो रसपिष्टानां स कल्कः परिकार्तितः’ किस आचार्य का कथन है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) शारंर्ग्धर
(189) चरकमत से कषाय कल्पनाओं का प्रयोग किस परनिर्भर करता है ?

(क) व्याधि के बल पर (ख) आतुर के बल पर (ग) व्याधि एवं आतुर के बल पर (घ) कोई नहीं
(190) चरकके पंचाशन्महाकषाय में स्थापन महाकषायों की संख्या है।

(क) 3 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(191) चरकके पंचाशन्महाकषाय में निग्रहण महाकषायों की संख्या है।

(क) 3 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(192) चरकोक्त पचास महाकषायों में सबसें अधिक 11 बार सम्मिलित द्रव्य है।

(क) मुलेठी (ख) आरग्वध (ग) मोचरस (घ) पिप्पली
(193) चरकोक्त पचास महाकषायों में सम्मिलित कुल द्रव्यों की संख्या है।

(क) 50 (ख) 500 (ग) 276 (घ) 352
(194) चरक संहिता में महाकषाय का वर्ण किस स्वरूप में हैं।

(क) लक्षण व उदाहरण (ख) कर्म और उदाहरण (ग) कर्म और लक्षण (घ) उपर्युक्तकोई नहीं
(195) चरकोक्त जीवनीय महाकषाय में अष्टवर्ग के कितने द्रव्य शामिल है।

(क) 8 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7
(196) ‘भारद्वाजी’ किसका पर्यायहै।

(क) सारिवा (ख) वनकपास (ग) मंजिष्ठा (घ) धातकी
(197) चरकने निम्न किस महाकषाय का वर्णन नहीं किया है।

(क) दीपनीय (ख) पाचनीय (ग) कण्ठय (घ) संज्ञास्थापक
(198) चक्रपाणि के अनुसार ‘सदापुष्पी’ किसका पर्यायहै।

(क) कमल (ख) कुमुद (ग) आरग्वध (घ) अर्क
(199) चरक ने अर्जुन का प्रयोग किस महाकषाय में वर्णित किया है।

(क) हृद्य (ख) शूल प्रशमन (ग) मूत्र संग्रहणीय (घ) उदर्द प्रशमन
(200) चरकोक्त ज्वरहर दशेमानि के मध्य में किसको ग्रहण नहीं किया है।

(क) सारिवा (ख) मंजिष्ठा (ग)मुस्ता (घ) पाठा

उत्तरमाला

  1. घ 121. ख 141. ख 161. ग 181. ग
  2. क 122. ग 142. ख 162. घ 182. ग
  3. घ 123. ग 143. ख 163. क 183. घ
  4. क 124. घ 144. क 164. ख 184. ख
  5. ग 125. ख 145. क 165. ग 185. ग
  6. ख 126. क 146. घ 166. घ 186. ग
  7. घ 127. ग 147. ख 167. घ 187. ग
  8. ख 128. घ 148. ख 168. ख 188. ग
  9. घ 129. ग 149. ख 169. ख 189. ग
  10. क 130. ख 150. ख 170. ग 190. ख
  11. क 131. घ 151. घ 171. ख 191. क
  12. क 132. घ 152. घ 172. घ 192. क
  13. क 133. ग 153. ग 173. ग 193. ग
  14. घ 134. ग 154. घ 174. ख 194. क
  15. ग 135. ग 155. ख 175. क 195. ग
  16. ख 136. ख 156. क 176. ख 196. ख
  17. क 137. घ 157. घ 177. ख 197. ख
  18. घ 138. ख 158. ख 178. ग 198. घ
  19. ग 139. ग 159. ग 179. क 199. घ
  20. घ 140. क 160. क 180. ख 200. ग
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *