६२ बर्ष पहले ऐसा था लुम्बिनी का मन्दिर
लुम्बिनी मे पहली बार सम्राट अशोक ने ईसा पुर्व २४९ मे पके हुवे ईंटों से चिन्ह लगाकर बुद्ध का जन्मस्थल के रुप मे चिन्हित किया था। इसके अलावा, बुद्ध के जन्मस्थल के रुप मे पहचान कराते हुवे अशोक स्तम्भ गाडा था/स्थापित किया था।
इसकी खोज बि. स. १९५३ के मंसिर (महिने) मे पाल्पा के बडे हाकिम/शासक खड्ग शम्सेर के साथ खोजी अभियान मे लगे हुवे जर्मन पुरातात्विक एन्टोम फ्युयरर ने पता लगाया था। वह अगर लुम्बिनी क्षेत्र नहीं पता लगाते तो अब तक यहाँ का कुछ पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं बिलुप्त हो सकती थी। अशोक स्तम्भ के पुर्व मे स्थित ढिस्को (मिट्टीका पठार/मानव निर्मित पहाड) के उपर के छाप्रो (घांस-फुसका घर) मे एक सर विहीन मुर्ति बरामद हुवा था।
बाद मे डा. ह्वे द्वारा उक्त मुर्ति मायादेवीके रुपमे पहचान कर लेने के बाद उसे संरक्षण किया जाने लगा। इसके कुछ ही सालों बाद बि. स. १९५५ मे जापानी भिक्षु इकाई कावागुची लुम्बिनी भ्रमण मे आए हुवे थे। उन्होने लुम्बिनी मे स्थित सर विहीन मायादेवी की उक्त मुर्ति को वनदेवी रुम्मिनदेई के रुप मे पशुबली सहित गांव के लोगों को पुजा करते देखा था। उसी वर्ष भारत से आए हुवे अन्वेषक पुर्णचन्द्र मुखर्जी को मुर्तिका सर मिल गया।
इसके बहोत साल बाद मुर्ती का पैर भी मिल जाने के बाद सभी अंगो को जोडकर उक्त मुर्ति को मायादेवी के रुपमे पुजा जाने लगा। इसी बीच भारतीय इन्जीनियर गोकुल चन्द्र नग्रथ आए थे। उन्होंने लुम्बिनी मे कुछ पुनर्निर्माण तथा जिर्णोद्वार सहित कई योजना लेकर आए हुवे थे। इसी समय नेपाल मे १९९० सालके महा भुकम्प पश्चात जुद्धशमशेरने नग्रथको काठमाडौं मे क्षतिग्रस्त दरवारों के पुनर्निर्माण काम के लिए काठमांडौं बुला लिया। दवारों के पुनर्निर्माणके दौरान अचानक उनका काठमाडौंमे ही मौत हो गई।
इसके बाद लुम्बिनी क्षेत्र के संरक्षण तथा प्रवर्धन के लिए जिम्मेदारी बि. स. १९९६ मे केशर शम्सेरको दिया गया। उन्होंने अन्वेषण के दौरान उत्खनन किए गए मिट्टीको एक जगह जमा करके मिट्टी का पठार/पहाड़ बनाकर रखा। उसको सुरक्षित रखनेके लिए बाहर से ईंटे बिछवाई । उसिको बाद मे मायादेवी का मन्दिर नामकरण कराया। बादमे अशोक स्तम्भ के पुर्वमे स्थित उक्त मन्दिरका स्वरुप परिवर्तन करके मायादेवी का मन्दिर बनाया गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव उ थान्तके बि. स. २०२४ बैशाख १० गते किए गए लुम्बिनी भ्रमण पश्चात प्रोफेसर केन्जो तांगे के नेतृत्व मे लुम्बिनी गुरुयोजना का बिधिवत शुभारंभ हुवा। यही वह कारण है के हमें आज लुम्बिनी का स्वरुप देखने को मिला।
नोट:- यह पोस्ट एक लुम्बिनी वासी की है जो कि नेपाली भाषा में थी, पूरी समझ नहीं आ रही थी इसलिए इसको नेपाल में रहने वाले एक फेस बुक फ्रेंड मोजीब अली ने हिंदी में अनुवादित करके भेजी है, इसमें बताए गए वर्ष शायद जो नेपाल में मानी जाने वाले सन के हिसाब से हैं- – प्रेम प्रकाश जी