बुद्ध की शिक्षाएँ: थेरवाद, महायान, वज्रयान, सहजयान और तंत्रयान

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 बुद्ध की शिक्षाएँ: थेरवाद, महायान, वज्रयान, सहजयान और तंत्रयान

हीनयान – महायान – बज्रयान -सहजयान तंत्रयान –

    आदि के बारे में सूक्ष्म जानकारी हेतु पढ़ें –

 बहुत बार मित्रों ने — यानों पर लिखने को कहा था।

आज मै ,हीनयान ,,महायान,, आदि यानो के बारे में संक्षेप में बताने का प्रयास करूंगा,,!

यान का अर्थ—–यान का अर्थ आजकल वायुयान, से जोड़ा जाता है,,यान शब्द का अर्थ वाहन भी है,।

त्रिपिटक में अनेकों बार यान शब्द,— जब कोई राजा या सम्पन्न  उपासक या जिज्ञाषु ,तथागत से मिलने आते थे उस समय कहा गया है कि जितना मार्ग यान का था उतना यान से बाद में पैदल चलकर  बुद्ध के पास आने का अनेकों सुत्तो में विवरण मिलता है,!

    जैसे ,,हीनयान. ,,महायान,  वज्रयान, तंत्रयान,

 सहजयान,, आदि आदि तथाा वाद ,जैसे स्थविर वाद, सर्वास्तिवाद ,सुत्तो से सम्बन्धित ,सौत्रांतिक, 

विभाषा लिखने बालों को,बैभाषिक  आदि आदि

  नामों से जान गया और इनमें कुछ कुछ मार्गों को लेकर अन्तर भी होगया ,जिससे ,कई भिन्न मार्गी

 नाम से भी जाने जाते थे,!

 सूक्ष्म में पढ़े—–

    अत: यान का अर्थ हुआ कि जिसके द्वारा आगे पहुंचा जा सके उसे ,,यान,, मानकर ही  बुद्ध के मार्ग पर चलने के लिये ही यान का स्तेमाल किया गया है !

  १–सारनाथ में पन्चवर्गीय श्रावकों को प्रथम धर्मोपदेश को ,आर्यअाष्टांगिक मध्यम मार्ग ,,चत्वार्यसत्य का तथा प्रतीत्यसमुत्पाद के द्वारा अर्हत पद पाकर निर्वाण को प्राप्त होना  ये हीनयाान,–हीनादि मुक्ता हीनयान: कहलाया गया यानी अपनी मुक्ति के लिये प्रयास रत रहना तथा नियमों को कढा़ई से पालन करना ।

,ये उपदेश  श्रावकों के लिये था,,!

 ये श्रावक यान हीनयान कहलाया इसी को स्थविरवाद भी कहा गया,!

 इसका विस्तार ,ताम्रपणि ,लंका में अधिक रहा !

 लंका में त्रिपिटिक की रचना हीनयानियोंं ने की थी

 उसी को महायानियों तथा अन्य यानियों ने 

स्वीकार किया  उसी को प्रमाणिक मानते हैं!

२-  प्रथम उपदेश के १६ सोलह साल बाद बोधिसत्वो् की सभा में  राजगृह के गृद्धकूट पर्वत पर  द्वितीय उपदेश में दिया जिसमें सर्वसत्व मोक्ष यानीा अधिक से अधिक प्राणियों का कल्याण करके उनको प्रमुदित होते देखना ये महायान कहलाया गया,,ये उपदेश बोधिसत्वों के लिये था जो बुद्ध होने से पहले की स्थिति है,!

 सहजयान – मंत्रयान -तंत्रयान आदि वाद –

  ये दोनों यान जिस गृहस्थाश्रम पर निर्भर था ।

 उन्होंने भी सरल धर्म को जानने की जिज्ञासा प्रकट की थी,

  शास्ता ने तथा श्रावकों को भी हुआ कि जन सामान्य

  के लिए भी कल्याणकारी सरल उपाय – उपदेश होना

  चाहिए !

  ३– धान्याकटक पर्वत पर भगवान ने गृहस्थों की

     जन सभा में भगवान ने कहा कि आप गृहस्थ —

    आश्रम में घर में  रहकर सभी अपने कार्य करते हुए

  सहज धर्म को धारण करें । तथा श्रावकों एवं संघ को

 भोजन आदि व्यवस्था के दायित्वों का निर्वहन करना

  तथा पंचशीलों का पालन करें ,।

    निर्लिप्त भाव से गृहस्थाश्रम का पालन करते हुए भी

 आप धर्म लाभी होने का सहज मंत्रणा  सलाह  का

उपदेश दिया साधारण जनों ने सरल मार्ग की याचना

 की -!

 भगवान ने संघ से कहा कि इन्हे भी धर्म दीक्षा दो !

  ऐसा ही हुआ !

   त्रिपिटक में कुरू जनपद के ,,कम्मासदम्म तथा –

  थुल्लकोटित नैगम्यों में गृहस्थ स्त्री पुरुष तथा दास 

 कर्मकरों को स्मृति प्रस्थान की भावना साधना करते पाते हैं ! *—-

 ( सूत कातते समय या पनघट पर भी फिजूल की चर्चा

 नहीं होती थी ,वे पूंछतीं थीं ,,अम्म ,तूं किस प्रस्थान की

 भावना करती है , चुपचाप रहने पर वे कहती थीं कि तूं

 जीते हुए भी मुर्दे के समान है ,फिर उसे कोई – स्मृति-

 प्रस्तान देकर साधना करने को कहतीं थीं )

  यही सहजयान आगे चल कर अनेकों यानों विभाजित

 हो गया !

  जब दूसरे पंथ बालों ने देखा कि बुद्ध सावकों के-

 भिक्षापात्र भर कर आते हैं,!

  तभी अन्य मतावलंबियों ने चीवर लेकर भिक्षु संघ में 

 प्रवेश किया था ! लेकिन ऊपर से ही वह बौद्ध  थे-

 लेकिन वह अपनी तंत्रयान की आढ़ में लुका छिपी करते रहे-थे -इसी लिये संघ को अनेकों बार धम्म –

 संगीते करनी पड़ीं थीं । आज भी —

( नोट –सारनाथ के मृगदाय बन का ही ,,धम्मचक्र –

        प्रवर्तनाय ऐतिहासिक है ।

   ये दोनों धम्मचक्क  ऐतिहासिक महत्व नहीं प्राप्त

  कर पाये – ये केवल भाव जगत में ही माने गये हैं,

  इन्होंने ने धम्म की महत्ता जन जन तक पहुंचाने में

  सहायता की थी ! कुछ ने -)

मौर्य साम्राज्य के बाद पश्चिमी भारत पर,,यवन शासक का अधिकार होने पर राजा मिलिन्द,, मिनान्दर  जो बौद्ध उपासक था जिसके समय में उज्जेन तथा सॉंची मैं व चैत्य पर्वत व व विन्ध्य पर्वत, नालन्दा, मथुरा आदि स्थानों में सर्वास्तिवाद के केन्द्र थे !  

अनेकों जगह स्थिविरबाद ,,हीनयान,भी था ।

 तथा मथुरा में सर्वास्तिबादियों ,,महायानियों का तथा ,,नालंन्दा मे्ं भी मुख्यकेन्द्र था वह दोनो यानों पर  अनुरक्त था,।

त्रिपिटक में धर्म उपदेशों को सुत्त कहा गया है सुत्तों के पाठ करने बालो्ं को सौत्रान्तिक या सौगत तन्त्र कहा गया है ।

त्रिपिटक में अनेंकों स्थान पर भगवान बुद्ध को सुगत शब्द से सम्बोधन करने के उदाहरण मिलते हैं।

यवनो को परास्त करके पश्चिमी भारत मे्,,यूचियो्,,

(शकों)/ ने कब्जा करलिया जिसमें प्रमुख शाखा कुषाण वंश में राजा कनिष्क,, सर्वास्तिबादी  था,।

इसी समय आचार्य ,,अश्वघोष तथा ,,वसुमित्र, भी सर्वास्तिबादी थे,, !

गान्धार ओर कश्मीर के विद्वानों मे मतभेद के कारण एक सभा बुलाई, उन्होने त्रिपिटक पर विभाषा,,नाम की टीका लिखी,इस कारण उन सर्वास्तिबादियों को ,,वैभाषिक ,,कहा गया,,!

बौद्ध धर्म में मुक्ति यानी निर्वाण के तीन मार्ग बताये गये हैं

१ —-जो सिर्फ  स्वयं दुखमुक्त होना चाहता है वह आर्य आष्टंगिक मार्ग पर आरूढ. होकर जीवन मुक्त हो  ,,अर्हत,, कहा जाता है,वह स्थविर वाद या

 हीनयान कहा जाता है !

२——जो उससे कुछ अधिक परिश्रंम के लिये तैय्यार होता है,वह जीवन मुक्त हो ,,,,प्रत्येक बुद्ध,,

कहा जाता है,,!

३——जो असंख्य जीवों का मार्गदर्शक,,बनने के लिये अपनी मुक्ति की फिक्र न कर बहुत परिश्रम कर बहुत  जनों का कल्याण करना ही जिसका  उद्देश्य है कुछ  समय बाद उस मार्ग से स्वयं प्राप्य निर्वाण को प्राप्त होता है, उसे,,बुद्ध,, कहा जाता है ।

  ये तीनों ही रास्ते क्रमश: अर्हत (श्रावक या शावक ) यान, हैं !

प्रत्येक बुद्धयान और बुद्धयान ही ( महायान,) कहे जाते है् !

   कुछ आचार्यों ने बाकी दो यानों की अपेक्षा बुद्धयान पर बड़ा जोर दिया है जिसे महायान कहा जाता है ।

इस प्रकार ये स्मरण रहे कि ये कि वह सब तीनों   १८ अठारह निकाय तीनों यानो् ,यानी त्रिपिटक को ही अपना प्रमाण मानते थे,!

  सबका कहना था किसी यान का चुनना मुमुक्ष की अपनी रुचि पर निर्भर है,,!

  ईसा की प्रथम शताब्दी मे्  वैभाषिक- सम्प्रदाय उत्तर में बड़ता जारहा था उसी समय ,,दक्षिण में

,,,विदर्भ,, ,,बरार,, में आचार्य ,,नागार्जुन पैदा हुये,

उन्होने माध्यमिक, शून्यबाद दर्शन पर ग्रन्थ लिखे,! शून्यवाद का अर्थ है सापेछतावाद ,,कोई भी सत्ता निरपेक्ष नही् है हर कार्य दूसरे कारण की अपेक्षा रखता है—।

 वही कार्य कारण श्रंखला यानी कि प्रतीत्य समुत्पाद ही शून्यवाद है,!  

 नागर्जुन  ने ही भगवान बुद्ध के विज्ञान शब्द को सरलार्थ चेतना ,कहा ,!

 उन्होने बताया कि वैदिक जिसे आत्मा कहते हैं, वह वास्तव में चेतना ही है ।

  चौथी शताब्दी मैं पेशावर,, के आचार्य वसुवन्ध ,,ने वैभाषिकों से मतभेद के बाद,,,अभिधर्मकोश,,ग्रन्थ लिखा,,उनके बड़े भाई  असंग,, विज्ञान बाद,(रासायन शास्त्र ),  और योगाचार सम्प्रदाय के प्रवर्तक हुये,,!

  इसी प्रकार चौथी शताब्दी तक बौद्धों के,,वैभाषिक,,सौत्रान्तिक,, योगाचार,,  माध्यमिक ,,चार सम्प्रदाय बनचुके थे,

इनमे पहले दोनों को मानने बालै तीनो् यानों को मानते थे इसलिये उन्हे हीनयानी कहा गया,,!

बाकी दो सिर्फ बुद्धयान को मानते थे इसी लिये उन्होने अपने को महायानी कहा,,!

बुद्धयान पर अच्छी प्रकार आरूढ़ बुद्धत्व के अधिकारी को बोधिसत्व कहा जाता है,,

महायान के सूत्रों में हर एक को बोधिसत्व के मार्ग पर चलने के लिये जोर दिया गया हैं ।

बुद्ध के चार सदी बाद,,कनिष्क के समय ही बुद्ध की पहली प्रतिमा ( मूर्ति)/बनाई गई थी बाद में अनेकों बोधिसत्वों की भी मूर्तियां बनानी शुरू होगईं  !और बोधि सत्वों की भी पूजा प्रारम्भ हो गई, बाद में इन्ही मूर्तियों को पौराणिकों ने अपने देवी देवताओं के रूप में  अतिक्रमण कर पूजा शुरू करदी,!

 बहुत समय बाद अनेकों यान जैसे बज्रयान सहजयान ,,मन्त्रयान, ये कुछ यान गृहस्थ उपासकों के लिये जब भगवान ने तीसरा उपदेश धान्याकटक पर्वत पर  आम जनों को सरली करण के रूप में  ये कहा था कि  आप गृहस्थ रहते हुये शुख भोगों का उपयोग करो और उनमें फंसो भी नही्ं  तभी से ये धम्म सभी के लिये सुगम हुआ!

  ये साधारण उपासकों को सरलीकरण का मंत्र या कहैं सलाह को ही मन्त्रयान और सहजयान कहा गया !

     बाद में और अन्य पन्थो ,धर्मों क अनुयाइयो कोे जिनको कि बौद्धौ जैसा सम्मान ,,भोजन नहीं मिलताथ था  इनके भोजन पात्र खाली रहते थे 

    इस धर्म में मे् प्रवेश करके ऊपरी तौर पर भिक्षु  बनकर   इस धर्म मे प्रवेश कर गये !

  इन्होने ही अनेकों प्रकार की तांत्रिक बिकृतियां पैदा कर दीं थी  और करते रहै थे जिससे जनता का विस्वास  भिक्षुओं से हटने लगा था,!

  ये मैने ,,यानों ,,के बारे में समय समय पर बदलाव होता गया था इसके बारे में बताने का प्रयास किया है ! 

      लेखन में कुछ त्रुटि हो गई   है ।

      शेष फिर कभी—-, 

                  भवतु सब्ब मंगलं

  लेखक – नेमसिंह शाक्य  विपश्यनायक लखनऊ,,।

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