पुष्पगिरि बौद्ध महाविहार की खोज!
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 639 ई. में उड़ीसा की यात्रा की …. लिखा कि उड़ीसा का राज्य 7000 ली में फैला हुआ है….भूमि उपजाऊ है…..अनाज बहुत अच्छा होता है….भाषा मध्य – भारत से अलग है….अधिकतर लोग बौद्ध धम्म के प्रेमी हैं …… कोई 100 संघाराम और 10,000 भिक्खु हैं।
उड़ीसा की दक्षिणी – पश्चिमी सीमा की ओर एक बड़ा – सा पहाड़ है…..पहाड़ पर स्तूप है…..संघाराम है…..संघाराम का नाम पुष्पगिरि ( Pu-Se-P’o-K’i- Li ) है।
पुष्पगिरि की खोज में इतिहासकार बरसों से लगे थे…..कनिंघम फ़ेल हो चुके थे…..कई खोजने के लिए माथा पटक रहे थे …..कोई इसे यहाँ, कोई वहाँ खोज रहा था।
रामप्रसाद चंदा ने उदयगिरि या ललितगिरि को पुष्पगिरि बता दिया …..उधर के. सी. पाणिग्रही ने उदयगिरि, ललितगिरि और रत्नागिरी के काॅमन कम्प्लेक्स को पुष्पगिरि बताया…..सब टोह रहे थे।
अब जाकर पुष्पगिरि की शिनाख्त हुई है……यह बौद्ध महाविहार उड़ीसा के जाजपुर जिले में लंगुडी की पहाड़ियों पर स्थित है…..लंगुडी की पहाड़ियों पर महास्तूप, ढेर सारे स्तूप, चट्टानों को काटकर बनाई गई मूर्तियाँ, अभिलेख तथा अन्य कलात्मक वस्तुएँ मिली हैं।
अनजाने में ही T. S. Motte ने 1766 में पुष्पगिरि का दस्तावेजीकरण किया था….वे ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए उस इलाके में सैन्य गतिविधियों का दस्तावेजीकरण कर रहे थे….मगर उन्हें यह पता नहीं था कि यह पुष्पगिरि बौद्ध महाविहार है।
लंगुडी की पहाड़ियों पर घने जंगल थे….आस – पड़ोस के गाँवों में जंगली पशुओं की दहशत थी….1950 के दशक में ग्रामीणों ने जंगली पशुओं का निवास कम करने के लिए जंगल को साफ करना आरंभ किया….वृक्षों के कटते ही पुरातात्विक अवशेष उभरने लगे।
मगर ये पुरातात्विक अवशेष पुष्पगिरि बौद्ध महाविहार के हैं……ग्रामीणों को नहीं पता था….सो उन्होंने श्रद्धावश इनका नामकरण ” पंच पांडव ” और ” सुनिया वेदी ” कर दिया।
1990 के दशक में लंगुडी पहाड़ियों का रहस्य खुलने लगा…. संदेह का अंधेरा साफ होने लगा…..1996 से 2006 तक कोई 10 साल खुदाई हुई …..जो टीला था, वह 20 मीटर व्यास का ईंटों से बना स्तूप निकला।
स्तूप से मौर्य काल का छत्र निकला……खंडित अभिलेख निकला……अभिलेख पर लिखा है कि यह स्तूप एक सामान्य बुद्धपूजक ने बनवाया है जिसका नाम अशोक था….दूसरे अभिलेख में लिखा है —-Puspasabhar Giriya अर्थात पुष्पों से भरा हुआ गिरि ……यहीं पुष्पगिरि है।
ह्वेनसांग ने लिखा है कि सम्राट अशोक ने उड़ीसा में 10 स्तूप बनवाए थे…..अभी उनमें एक मिला है…..9 स्तूप मिलना बाकी है…..पुष्पगिरि बौद्ध शिक्षा का बड़ा केंद्र था……अशोक के जमाने से यह बौद्ध महाविहार आगे 1400 सालों तक ज्ञान की अविरल धारा बहता रहा।
इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि प्राचीन भारत का इतिहास प्राचीन भारत के फ्रेम में नहीं लिखा गया है……इतिहास और है ….. और फ्रेम कुछ और है……प्राचीन भारत के इतिहास को प्राचीन भारतीय फ्रेम में लिखे जाने की जरूरत है।
– प्रोफ़. राजेंद्र प्रसाद सिंह